क्या आपकी पूजा भी हो रही है विफल, जानें कहां हो रही है भूल

punjabkesari.in Saturday, Nov 04, 2017 - 08:53 AM (IST)

किसी नगर में एक निर्धन व्यक्ति रहता था। वह हमेशा दुखी रहता और उसे इस बात की शिकायत रहती कि भगवान ने इतनी पूजा-पाठ के बाद भी उसे कुछ नहीं दिया। वह भगवान की मूरत के समक्ष अक्सर विनती करता, ‘‘प्रभु! आखिर मेरी सेवा में कहां कमी है जो आप मेरी सुध नहीं लेते। मैं अपने आस-पास देखता हूं तो मुझे सभी लोग सुखी नजर आते हैं। फिर भला मैं ही अकेला दुखी क्यों हूं? क्या मेरी सारी जिंदगी इसी तरह दुख और कष्ट में गुजर जाएगी?’’

 

आखिरकार एक दिन भगवान को उस पर दया आ गई। वे उसके सामने प्रकट हुए और बोले, ‘‘वत्स, तुम मुझसे क्या चाहते हो?’’ वह व्यक्ति बोला, ‘‘प्रभु! दूसरों की तरह मैं सुख और उन्नति चाहता हूं।’’

 

यह सुनकर भगवान ने कहा, ‘‘वत्स, व्यक्ति की सुख-शांति और उन्नति उसके कर्मों व व्यवहार पर निर्भर है। तुम्हें लगता है कि तुम्हारे पड़ोसी सुखी हैं और तुम दुखी, तो लो मैं तुम्हें दो थैले देता हूं। इनमें से एक थैले में तुम्हारे पड़ोसियों की बुराइयां भरी हैं। उसे तुम पीठ पर लाद लेना और सदैव उसका मुख बंद रखना, न खुद देखना और न दूसरों को दिखाना। दूसरे थैले में तुम्हारे दोष और खामियां भरी हैं। उसे अपने सामने की ओर लटका लो और बार-बार खोलकर देखते रहना। इससे तुम्हें अपने दोष दूर करने में मदद मिलेगी।’’

 

यह कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए। व्यक्ति ने दोनों थैले उठाए और वापस चल पड़ा लेकिन उससे एक भूल हो गई। उसने अपनी बुराइयों का थैला पीठ पर लाद लिया और उसका मुंह कसकर बंद कर दिया तथा अपने पड़ोसियों की बुराइयों से भरा थैला सामने की ओर लटका लिया। वह उसका मुंह खोलकर बार-बार देखता रहता और दूसरों को भी दिखाता रहता। इससे उसने जो वरदान मांगे थे, वे भी उलटे हो गए।

 

वह व्यक्ति उन्नति की बजाय अवनति करने लगा और उसकी अशांति व दुख भी बढ़ गए। दूसरों की बुराइयां दिखाने की वजह से सब लोग उसे बुरा बताने लगे। यदि व्यक्ति अपनी यह भूल सुधार लेता तो उसकी उन्नति होती और सुख-शांति मिलती। उन्नति का मार्ग यही है कि हम दूसरों के दोष देखने की बजाय अपने दोषों को देखते हुए सुधार की लगातार कोशिश करते रहें।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News