प्ररेक कहानीः चींटी की कोशिशें रंग लाईं

punjabkesari.in Thursday, Mar 22, 2018 - 10:40 AM (IST)

प्राचीन समय की बात है, अनंतपुर में राजा रामदत्त का राज था। वह विद्वानों, कवियों और कलाकारों का बड़ा सम्मान करते थे। आनंतपुर में ही एक शिल्पी भी रहता था। नाम था गंगा दास। वह राज्य की सीमा के पास वाली पहाड़ी पर पत्थर काटकर प्रतिमाएं बनाया करता था। उसकी बनाई प्रतिमाएं बड़ी सुंदर होती थीं। 


एक दिन राजा रामदत्त शिकार के लिए जंगल गए। वहां एक मृग के पीछे उन्होंने अपना घोड़ा दौड़ाया। मृग डरकर पहाड़ी की ओर भागा। रामदत्त उसके पीछे-पीछे चलते गए। पहाड़ी पर गंगा दास को प्रतिमाएं बनाते देख रामदत्त ठिठक गए। इतनी सुंदर प्रतिमाएं उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थीं। रामदत्त ने गंगा दास से कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरी भी एक सुंदर प्रतिमा बनाओ।’’ गंगा दास ने सिर झुकाते हुए कहा, ‘‘महाराज, मैं आपकी प्रतिमा अवश्य बनाऊंगा।’’ गंगा दास ने राजा की प्रतिमा बनानी शुरू की। कई दिन बीत गए परंतु प्रतिमा तैयार नहीं हुई। गंगा दास प्रतिमाएं बनाता और तोड़ देता। जैसी प्रतिमा की कल्पना गंगा दास ने की थी वैसी बन ही नहीं पा रही थी।


निराश होकर गंगा दास टूटी प्रतिमाओं के समीप बैठ गया। अचानक उसकी नजर एक चींटी पर पड़ी जो गेहूं के एक दाने को दीवार के उस पार ले जाना चाहती थी। इस कोशिश में वह बार-बार गिर रही थी फिर भी कोशिश कर रही थी। आखिरकार चींटी की कोशिशें रंग लाईं और वह गेहूं का दाना लेकर दीवार के उस पार चली गई। यह दृश्य देख गंगा दास ने सोचा, जब यह छोटी-सी चींटी निरंतर प्रयास से सफलता पा सकती है तो मैं क्यों नहीं? वह फिर से प्रतिमा बनाने के काम में जुट गया। इस बार गंगा दास सफल रहा। राजा रामदत्त ने जब प्रतिमा को देखा तो देखते रह गए। उन्हें प्रशंसा के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे। रामदत्त ने गंगा दास को बहुमूल्य वस्त्र, आभूषण और हजारों स्वर्ण मुद्राएं ईनाम में दीं और गंगा दास को राज शिल्पी घोषित कर दिया।
 


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