अमंगलों से रक्षा करता है सर्व मांगल्यकारी वैदिक रक्षासूत्र

punjabkesari.in Monday, Aug 07, 2017 - 10:15 AM (IST)

भारतीय संस्कृति में ‘रक्षाबंधन पर्व’ की बड़ी भारी महिमा है। इतिहास साक्षी है कि इसके द्वारा अनगिनत पुण्यात्मा लाभान्वित हुए हैं। इस पर्व ने अपना एक क्रांतिकारी इतिहास रचा है। रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है। यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम एवं भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बांधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है।


कैसे बनाएं वैदिक राखी?
वैदिक राखी बनाने के लिए एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें। उसमें (1) दूर्वा, (2) अक्षत (साबुत चावल), (3) केसर या हल्दी, (4) शुद्ध चंदन, (5) सरसों के साबुत दाने- इन पांच चीजों को मिलाकर कपड़े में बांधकर सिलाई कर दें। फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें। सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पांच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं।


वैदिक राखी का महत्व
वैदिक राखी में डाली जाने वाली वस्तुएं हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जाने वाले संकल्पों को पोषित करती हैं।


दूर्वा : जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही ‘हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सद्गुण फैलते जाएं, बढ़ते जाएं...’ इस भावना का द्योतक है दूर्वा। दूर्वा गणेश जी की प्रिय है अर्थात् हम जिनको राखी बांध रहे हैं उनके जीवन में आने वाले विघ्नों का नाश हो जाए।


अक्षत (साबुत चावल) : हमारी भक्ति और श्रद्धा भगवान और गुरु के चरणों में अक्षत हो, अखंड और अटूट हो, कभी क्षत-विक्षत न हो यह अक्षत का संकेत है। अक्षत पूर्णता की भावना के प्रतीक हैं। जो कुछ अर्पित किया जाए, पूरी भावना के साथ किया जाए।


केसर या हल्दी : केसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात् हम जिनको यह रक्षासूत्र बांध रहे हैं उनका जीवन तेजस्वी हो। उनका आध्यात्मिक तेज, भक्ति और ज्ञान का तेज बढ़ता जाए। केसर की जगह पिसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं। हल्दी पवित्रता एवं शुभ का प्रतीक है। यह नजरदोष व नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व सम्पन्नता लाती है।


चंदन : चंदन दूसरों को शीतलता और सुगंध देता है। यह इस भावना का द्योतक है कि जिनको हम राखी बांध रहे हैं, उनके जीवन में सदैव शीतलता बनी रहे, कभी तनाव न हो। उनके द्वारा दूसरों को पवित्रता, सज्जनता व संयम आदि की सुगंध मिलती रहे। उनकी सेवा-सुवास दूर तक फैले।


सरसों : सरसों तीक्षण होती है। इसी प्रकार हम अपने दुर्गुणों का विनाश करने में और समाज-द्रोहियों को सबक सिखाने में तीक्षण बनें।


अत: यह वैदिक रक्षासूत्र वैदिक संकल्पों से परिपूर्ण होकर सर्व-मंगलकारी है। रक्षासूत्र बांधते समय यह श्लोक बोला जाता है।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वां अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥


(शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बांधते समय ‘अभिबध्नामि’ के स्थान पर ‘रक्षबध्नामि’ कहें।)


इस मंत्रोच्चारण व शुभ संकल्प सहित वैदिक राखी बहन अपने भाई को, मां अपने बेटे को, दादी अपने पोते को बांध सकती है। यही नहीं, शिष्य भी यदि इस वैदिक राखी को अपने सद्गुरु को प्रेम सहित अर्पण करता है तो उसकी सब अमंगलों से रक्षा होती है तथा गुरुभक्ति बढ़ती है।


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