120 वर्ष में एक बार आता है ऐसा समय, जानें ग्रहों के अस्त काल में छिपे राज

punjabkesari.in Monday, Oct 30, 2017 - 10:23 AM (IST)

सन 2017 में देव प्रबोधिनी एकादशी से देव उत्थापन के बाद भी मांगलिक कार्य शुरू नहीं होंगे। गुरु व शुक्र अस्त के कारण शेष आधे वर्ष में विवाह आदि मांगलिक कार्यों के लिए लोगों को केवल 20 ही दिन मिलेंगे। इसके अनेक कारण है जैसे की गुरु व शुक्र तारा अस्त रहेगा। मलमास और होलाष्टक आदि कारणों से लम्बे समय तक विवाह, नांगल, गृहप्रवेश मुंडन आदि सभी शुभ कार्य रुके रहेंगे। ज्योतिषशास्त्र की गोचर प्रणाली अनुसार आनेवाले दिनों में शुक्र 83 दिन तक अस्त रहेंगे। शुक्र तारा बुधवार दिनांक 29.11.17 से सोमवार दिनांक 19.02.18 तक अस्त रहेगा। इसके साथ ही देवगुरु बृहस्पति 29 दिनो तक अस्त रहेंगे। बृहस्पति गुरुवार दिनांक 12.10.17 रात 21:08 से लेकर गुरुवार दिनांक 09.11.17 तक अस्त रहेंगे। इस साल 31.10.17 देव प्रबोधिनी एकादशी से देव जागेंगे। 


इस दिन स्वयंसिद्ध अबूझ मुहूर्त रहेगा। आगामी 09 नवंबर को गुरु उदय होने के बाद विवाह शुरू होंगे परंतु पहला सावा शनिवार दि॰ 11.11.17 को रहेगा तथा 23 नवंबर तक कुल मिलाकर मात्र 5 सेव रहेंगे। ये सेव इस प्रकार हैं। 13 नवंबर सोमवार, 14 नवंबर मंगलवार, बुधवार 15 नवंबर, मंगलवार 21 नवंबर, तथा गुरुवार 23 नवंबर। सके बाद 14 दिसम्बर से मलमास लगेगा। 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही मलमास खत्म हो जाएगा लेकिन शुक्र अस्त रहेगा। कुल मिलाकर आने वाले साल 2018 में भी मात्र 31 सावे उपलब्ध हैं। ऐसा अमूमन हर 120 वर्ष में एक बार ऐसा समय आता है जब पूरे साल में 50 से कम सावे मिलते हैं।


तारा डूबने का अर्थ तारा के अस्त हो जाने से है। जैसे सूर्य का उदय और अस्त होना। खगोल के मुताबिक सूर्य पृथ्वी के सबसे नजदीक का तारा है जो अपने ही प्रकाश से चमकता है। अन्य ग्रह सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं। वैदिक ज्योतिष में गुरु एवं शुक्र ग्रह को तारा माना गया है। इनके अस्त हो जाने पर भारतीय ज्योतिष शास्त्र किसी भी प्राणी को शुभकार्य की अनुमति नहीं देता। ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है और ऋग्वेद के अनेक मंत्र यह संकेत देते हैं कि हर बीस महीनों की अवधि के दौरान शुक्र नौ महीने प्रभात काल में अर्थात प्रातः काल पूर्व दिशा में चमकता हुआ दृष्टिगोचर होता है। 


गुरु एवं शुक्र के उदयास्त के संबंध में वैदिक साहित्य से भी यह ज्ञात होता है कि गुरु दो से तीन माह तक शुक्र के आसपास ही घूमा करता था। इस अवधि में गुरु कुछ दिनों तक शुक्र के अत्यधिक निकट रहता है लेकिन शुक्र की अपनी स्वाभाविक तेज गति के कारण गुरु पीछे रह जाता है और शुक्र पूर्व दिशा की ओर बढ़ते हुए आगे निकल जाता है जिसका परिणाम यह होता है कि शुक्र ग्रह का पूर्व दिशा की ओर उदय होता है। इस अस्तोदय की कार्य प्रणाली के पूर्व इतना जरूर निश्चित रहता है कि कुछ समय तक ये दोनों ग्रह साथ-साथ रहते हैं। शुक्र का अर्थ सींचने वाला है। इसके बल के अनुरूप ही पुरुष वीर्यशाली या वीर्यहीन होता है। जब शुक्र ग्रह पृथ्वी के दूसरी ओर चला जाता है तब इसे शुक्र का अस्त होना या डूबना कहते हैं। 


गुरु व शुक्र के अस्त के समय विवाह आदि शुभ मांगलिक कार्य करना पूर्णतः वर्जित है। इसी तरह स्वयंवर के लिए भी गुरु व शुक्र के अस्त का समय त्याज्य माना गया है। कोई व्यक्ति पुनर्विवाह करे तो गुरु व शुक्र के अस्त, वेध, लग्न शुद्धि, विवाह विहित मास आदि का कोई दोष नहीं लगता। संक्रामक/गंभीर रोगों की स्थिति में रोगी की जीवन रक्षा हेतु औषधि निर्माण, औषधियों का क्रय आदि एवं औषधि सेवन के लिए गुरु और शुक्र के अस्तकाल का विचार नहीं किया जाता है। 


पुराने या मरम्मत किए गए मकान में गृह प्रवेश हेतु गुरु एवं शुक्र के अस्त काल का विचार नहीं किया जाता अर्थात जीर्णोद्धार वाले मकान बनाने के लिए गुरु व शुक्र अस्त काल में प्रवेश कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि शुक्र के अस्त होने पर यात्रा करने से प्रबल शत्रु भी जातक के वशीभूत हो जाता है। शत्रु से सुलह या संधि हो जाती है। शुक्रास्त काल में वशीकरण के प्रयोग शीघ्र सिद्धि देने वाले साबित होते हैं। गुरु व शुक्र के उदय काल में ही वास्तु शांति कर्म करना शुभ माना जाता है, अस्त काल में नहीं। 


नारायण बलि कर्म गुरु व शुक्र के अस्त काल में करना त्याज्य माना गया है। वृक्षारोपण का कार्य गुरु और शुक्र के अस्त काल में करने से अशुभ लेकिन उदय काल में करने से शुभ फल देता है। शपथ ग्रहण मुहूर्त का विचार करते समय गुरु व शुक्र की शुद्धि आवश्यक होती है, अतएव इन दोनों के अस्त काल में शपथ ग्रहण करना वर्जित है। बच्चों का मुंडन संस्कार इन दोनों ग्रहों के अस्त काल में करना वर्जित है। देव प्रतिष्ठा गुरु व शुक्र के अस्त काल में करनी चाहिए। यात्रा हेतु शुक्र का सामने और दाहिने होना त्याज्य है। वधू का द्विरागमन गुरु व शुक्र के अस्त काल में वर्जित है। यदि आवश्यक हो तो दीपावली के दिन ऋतुवती वधू का द्विरागमन इस काल में कर सकते हैं। राष्ट्र विप्लव, राजपीड़ावस्था, नगर प्रवेश, देव प्रतिष्ठा, एवं तीर्थयात्रा के समय नववधू को द्विरागमन के लिए शुक्र दोष नहीं लगता। वृद्ध व बाल्य अवस्था रहित शुक्रोदय में मंत्र दीक्षा लेना शुभ माना जाता है। प्रसूति स्नान के अलावा अन्य शुभ कार्यों में भी इन दोनों ग्रहों का अस्त काल वर्जित है।

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com


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