इनकी शरण में गए थे धरती पर आए भगवान के ये अवतार

punjabkesari.in Wednesday, Oct 11, 2017 - 04:35 PM (IST)

भगवद् गीता जी में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘विगतेच्छा भय क्रोधो य: सदा मुक्त एव स:’’ 

 

जो इच्छा, भय और क्रोध से रहित है वह सदा मुक्त ही है। इस उपरोक्त ज्ञान रूप तप से पवित्र होकर बहुत से भक्त भगवान के स्वरूप को प्राप्त कर चुके हैं। जो मनुष्य सदैव कामनाओं के अधीन रहता है उसमें सदैव भय व्याप्त रहता है। कामनाओं में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध से विवेक रूपी ज्ञान शक्ति का नाश होता है। 

 

इसलिए हे अर्जुन। ‘‘न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते’’ इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला नि:संदेह कुछ भी नहीं है।

 

भगवान के नाम का आश्रय लेने वाला सदैव भय मुक्त रहता है। असुरराज रावण, जिसे ब्रह्मा जी से वर प्राप्त था, भगवान शिव की जिस पर विशेष कृपा थी, समस्त देवतागण, नवग्रह जिसके अधीन थे। केवल भगवान श्री राम नाम का आश्रय लेकर ज्ञानियों में अग्रगण्य श्री हनुमान जी ने उसकी लंका को भस्मीभूत कर दिया।

 

बाली पुत्र अंगद ने अपने प्रभु के नाम के बल पर ही रावण की सभा में बड़े-बड़े योद्धाओं को अपने पृथ्वी पर जमाए हुए पैर को हिलाने के लिए आमंत्रित किया। भय मुक्त अंगद के मुख पर जो आत्मविश्वास था, वह केवल भगवद् नाम की ही कृपा थी जिस कारण रावण सहित सभी योद्धाओं को अपमानित होना पड़ा था।

 

जब तक मनुष्य के मन में भय समाया रहता है तब तक उसमें निश्चयात्मिका बुद्धि का अभाव रहता है। जब तक अर्जुन के मन में युद्ध के प्रति भय था, कि कहीं उसके हाथों अपने गुरुजनों का वध हो जाने से, अधर्म न हो जाए, वह इस निर्णय को लेने में अक्षम थे कि युद्ध करने, अथवा न करने में सही विकल्प कौन-सा है। भगवान की शरण प्राप्त करने से ही वह श्रेष्ठ निर्णय लेने में सफल रहे, जब उन्होंने स्वयं को भगवान का शिष्य मान लिया। ‘‘शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।’’ इस प्रकार अर्जुन ने सभी प्रकार से भगवान की शरण प्राप्त कर ली।

 

मनुष्य जीवन में निर्णय-अनिर्णय की स्थिति सदैव बनी रहती है। विवेक शक्ति से युक्त होकर ही मनुष्य सही निर्णय का चुनाव करता है। भय से युक्त मन में विवेक शक्ति का अभाव होता है। मार्कण्डेय ऋषि मां भगवती से अभय प्रदान करने के लिए स्तुति करते हैं:

 

‘‘सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयभयस्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तुते।’’

 


हे मां! आप सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, सभी शक्तियों से सम्पन्न हैं। आप मुझे भय से मुक्त करें। हे देवि! आपको नमस्कार है। मां आदि शक्ति सभी प्रकार के भय का नाश करने वाली है।

 

षोड वर्ष के बालक मार्कण्डेय ने मृत्यु को समीप जान, जब मृत्युंजय भगवान शिव जी की ‘‘चंद्रशेखरमाश्रय मम किं करिष्यति वै यम:’’ से स्तुति कर भगवान शिव को प्रसन्न कर न केवल आश्रय प्राप्त किया अपितु भगवान शिव से अमरत्व भी प्राप्त किया। भय नाम अंधकार का है। यह अंधकार अज्ञानता, अश्रद्धा और संशययुक्त बुद्धि से उत्पन्न होता है। इसी से जीव का नाश होता है।

 

योगी और भोगी दोनों को अंतिम समय का भय होता है परन्तु दोनों के भय में अंतर है। भोगी जीवन भर सांसारिक पदार्थों का संग्रह करता है ताकि बुढ़ापे के समय उसका जीवन कष्टमय न हो। योगी जीवन पर्यन्त यह अभ्यास करता है कि प्रयाण काल (शरीर छोड़ते समय) में उसकी चित्त वृत्ति परमात्मा में स्थिर रहे क्योंकि यह नियम है कि परमेश्वर के ध्यान के अभ्यास रूप योग से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरंतर चिंतन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाश रूप दिव्य पुरुष को अर्थात परमेश्वर को ही प्राप्त होता है। जटायु, बाली, भीष्म पितामह ने अंतिम समय में अपनी चित्त वृत्तियों को भगवान के श्रीमुख पर स्थिर कर परमधाम प्राप्त किया।

 

‘‘श्री राम चंद्र कृपालु भज मन। हरण भव भय दारूणम्’’

 

भगवान श्री राम अत्यंत कृपालु हैं तथा सांसारिक बंधनों के भय से मुक्त करने वाले हैं इसलिए हे मन। तू केवल उनका नाम ही भज। 

 

वंदे विष्णुं भव भय हरं सर्वलौकेकनाथम्।

 

सभी लोकों के एकमात्र स्वामी भव भय हरने वाले भगवान विष्णु की हम वंदना करते हैं। उपरोक्त स्तुतियों में भय से मुक्ति हेतु ही भगवान की वंदना भक्तों द्वारा की जाती है। काक भुशुण्डि जी श्रीराम की कृपा से, भागवत प्रवक्ताओं में अग्रगण्य शुकदेव मुनि जी भगवान श्री कृष्ण जी की कृपा से ही निर्भय होकर इस संसार में विचरण करते हैं। माया के बंधन में बंधा जीव सदैव भय से युक्त रहता है। केवल भगवद् नाम का आश्रय ही जीव की बुद्धि को निर्भय बनाता है। उसके लिए आवश्यक है कि मनुष्य भगवान की दिव्य लीलाओं का स्वाध्याय करे अथवा श्रवण परायण होकर रसास्वादन करे। कलिकाल में केवल गोविंद नाम ही सब प्रकार के भय का नाश करने वाला है।


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