गीता जयंती: ये सूत्र सदा रखें याद, पलक छपकते मिलेगा हर मुश्किल का हल

punjabkesari.in Wednesday, Nov 29, 2017 - 12:15 PM (IST)

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि अपने मन को आत्मा में स्थिर करके, सभी तरह के कामों को मुझे समर्पित करके, इच्छा, मोह-माया और भावनाओं की तपिश से बाहर आकर युद्ध करो। कर्म के वक्त इंसान के तीन भाव होते हैं। पहला, किए जा रहे काम से मिलने वाले फल की इच्छा। दूसरा, इस भाव से कोई कर्म करना कि वह मैं ही कर रहा हूं और तीसरा, कर्म न करने पर मिलने वाली सजा की वजह से काम करना। जब तक इन तीनों में से एक भी भाव है, तब तक कर्म का बंधन आपको बांधता रहेगा क्योंकि तीनों में काम को करने की भावना या अहंकार का भाव बना रहता है। यह भाव तब तक बना रहेगा, जब तक हम अपने कर्म परमात्मा को अर्पित नहीं करेंगे। जैसे ही हम यह सोचेंगे कि हम जो काम कर रहे हैं वह भगवान के चरणों में समर्पित है, तभी अंदर से इच्छा, मोह व डर निकल जाएगा और हमारा मन खुद-ब-खुद शांत हो जाएगा। 


शांत चित को भगवान की साधना से आत्मा में स्थिर करना सरल है लेकिन यदि कर्मों में काम को करने या आसक्ति का भाव बना रहेगा तो मन शांत नहीं होगा। इसलिए हम जब भी कोई काम करें थोड़ा अपने मन पर भी ध्यान दें और सोचें कि इस कर्म में मेरी इच्छा है, मोह है या डर है। यदि इसमें से कुछ है तो मन के इस बुरे भाव को बदलने की कोशिश करें। ऐसा करते ही कर्म तो वही रहेगा, लेकिन अब वह आपको आनंद देने वाला बन जाएगा। 


कर्म को आनंददायक बनाएं, गीता-सार
क्यों व्यर्थ चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा न पैदा होती है, न मरती है।


जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है। जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिंता न करो। वर्तमान चल रहा है।


तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए जो लिया, यहीं से लिया, जो दिया यहीं  पर दिया। जो लिया, इसी भगवान से लिया। जो दिया इसी को दिया। खाली हाथ आए, खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्र हो रहे हो। बस, यही तुम्हारे दुखों का कारण है।


परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो, विचार से हटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।


न यह शरीर तुम्हारा है न तुम इस शरीर के हो। यह अग्रि, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा परन्तु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्या हो।


तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिंता और शोक से सर्वदा मुक्त है।


जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से तू सदा जीवन मुक्त का आनंद अनुभव करेगा।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News