गंगा स्नान-गंगा दशहरा प्रारंभ, मिलेगा स्नान से स्वर्ग और मृत्यु देगी अमर पद

punjabkesari.in Thursday, May 25, 2017 - 12:00 PM (IST)

26 मई शुक्रवार को ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष प्रारंभ होगा। जिसके साथ दस दिनों तक चलने वाला दशाश्वमेघ घाट पर श्री गंगा स्नान एवं श्री गंगा दशहरा प्रारंभ हो जाएगा। सनातन धर्म में उन्हीं स्थानों को तीर्थरूप में माना जाता है जिनका प्राकृतिक वातावरण ही स्वभावत: पवित्रतम हो और विज्ञान की कसौटी पर भी उनके लाभ पूरे उतरते हों। यह व्यवस्था परिमित बुद्धि वाला कोई मनुष्य नहीं कर सकता। सर्वज्ञ जगत सृष्टा भगवान ही कर सकते हैं, इसलिए गंगा का वेदोक्त महत्व सभी विज्ञजनों के मनन करने योग्य है। वेदों में गंगा का नाम सब नदियों से पहले लिया जाता है।


यूं तो प्राय: सभी तीर्थों की महिमा अकथनीय है परंतु भगवती गंगा के संबंध में तो वैदिक साहित्य में अनेकों ऐसे मंत्र पाए जाते हैं जिनमें गंगाजल की लोकोत्तर महिमा का विशद वर्णन विद्यमान है। 


इं मे गंगे! यमुने सरस्वती! शतुॠि! स्तोमं सचत परुष्ण्या।
अतिक्न्या मरुद्बधे/ वितस्तयार्जीकाये! शृणुहया सुषोमया।।
ऋग्वेद-10-75-5


अर्थ- हे गंगा, शतुद्री, परुष्णी, असिक्नी, मरुद्वृधा, वितस्ता, सोमा, आर्जीकीया नाम वाली नदियों/तुम हमारी प्रार्थना को श्रवण करो और स्वीकार करो।


उपर्युक्त मंत्र में जिन पवित्र दस नदियों का नाम लिया गया है उन सबमें सर्वप्रथम गंगा का उल्लेख हुआ है।


एक अन्य मंत्र में भी इसी आशय की पुष्टि की गई है। यथा-
सितासिते-सरिते-यत्र-संगते, तत्रप्लुता सो दिवमुत्पतन्ति।
ये वे तनुं विसृजन्ति धीरा, स्तैजनासोऽमृतत्वं भजन्ते।।


ऋग्वेद परिशिष्ट
अर्थात्-
‘जिस स्थान में (प्रयाग) श्वेत काली नदियों-(गंगा और यमुना) का संगम हुआ है उस स्थान में यात्रा करने से स्वर्ग मिलता है और जो धीर पुरुष इस स्थान में शरीर त्याग देते हैं वे अमर पद को प्राप्त होते हैं।’

यहां भी ‘अभ्यर्हितं पूर्व’ के अनुसार ‘सिता’ नाम से प्रथम गंगा का ही उल्लेख किया गया है।


गंगा जल महौषधि है-
हिमवत: प्रस्त्रवन्ति सिन्धो समह संगम।
आपौ हृ मह्यं तद्देवीर्ददन हृद्द्योतभेषजन्।।


अर्थ- (सायण भाष्य का भाषानुवाद (गंगादि नदीरूपा: पापक्षयहेतव:) गंगा आदि नदियों के- (पाप को नष्ट करने वाले) आप:) जल (हिमवत:) हिमालय पर्वत से (प्रस्त्रवन्ति) बहते हैं (और उनका) (सिन्धौ) समुद्र में (समह) समान रूप से (संगम) संगम है। (वह गंगा जल) (देवी) दिव्य जल है (सो) (मह्यं) मुझे (हृद्द्योभेषजम्) हृदय के दाह को दूर करने वाला-औषध (ददन्) प्रदान करे।


इसलिए ‘बाल्मीकीय रामायण’ बालकांड सर्ग-34 में महर्षि विश्वामित्र जी ने भगवान रामचंद्र जी को भगवती गंगा का वर्णन करते हुए उसे ‘सर्व लोकनमस्कृता’ और ‘स्वर्गदायिनी’ कहा है। जगजननी सीता ने भी वन यात्रा के समय गंगा की वंदना करते हुए सकुशल वापस लौटाने पर बड़े समारोह के साथ पूजा करने की मन्नत मांगी है।


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