Follow करें दिव्यांग बर्ड की सफलता का मूलमंत्र और हो जाएं Famous
punjabkesari.in Tuesday, Apr 25, 2017 - 10:20 AM (IST)
बर्ड बहुत छोटे थे। एक दिन उन्होंने एक पुस्तक पढ़ी। उसमें उन्होंने जाना कि एडमिरल पियरी उत्तरी ध्रुव तक पहुंचने के लिए साहसिक संघर्ष कर रहे हैं किंतु विपरीत परिस्थितियां उनके संघर्ष पर भारी पड़ रही हैं। यह जानकर नन्हे बर्ड ने अपने मन में निश्चय कर लिया कि मेरे संघर्ष की कोई सीमा नहीं होगी और मैं हर हाल में उत्तरी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला व्यक्ति बनूंगा। नन्हे बर्ड ने उसी दिन से कठोर प्रशिक्षण लेना आरंभ कर दिया। इस रोमांचक अभियान के लिए वह दिन-रात कड़ा परिश्रम करते रहे। बर्ड को ठंडा मौसम बहुत बुरा लगता था लेकिन उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और अपने शरीर को कठोर बनाया ताकि वह उत्तरी ध्रुव की ठंड का सामना कर सकें। पर सफलता इतनी सहजता से मिल जाए तो वह भला असली सफलता कहां हुई। उन दिनों अपनी जीविका के लिए बर्ड अमरीकी नौसेना में नौकरी कर रहे थे।
वह वहां पर भी कठिनाइयों से बिल्कुल नहीं घबराते। एक दिन दुर्घटना में उनके पैर की हड्डी टूट गई। केवल 28 साल की उम्र में इस शारीरिक अक्षमता के कारण उन्हें रिटायर कर दिया गया। बर्ड इन कठिनाइयों से परेशान अवश्य हुए लेकिन टूटे नहीं।
वे स्वयं से बोले, क्या हुआ अगर मैं उत्तरी ध्रुव तक पैदल नहीं जा सकता, हवाई जहाज से तो मैं अवश्य वहां पहुंच सकता हूं और मैं पहुंचकर दिखाऊंगा। इसके बाद उन्होंने हवाई जहाज से उत्तरी ध्रुव तक पहुंचने के प्रयास करने आरंभ किए। आखिर उनकी मेहनत रंग लाई और इस तरह एडमिरल रिचर्ड बर्ड उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के ऊपर हवाई उड़ान भरने वाले पहले व्यक्ति बने। बर्ड का कहना था कि विषम परिस्थितियों और बाधाओं के बावजूद सफलता पाई जा सकती है, बशर्ते हमारे लक्ष्य स्पष्ट हों और हममें संघर्ष करने का माद्दा हो।
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