खतरनाक बीमारी है अहंकार, उजाड़ देती है जिंदगी

punjabkesari.in Monday, Nov 13, 2017 - 08:22 AM (IST)

गीता के तीसरे अध्याय में कहा गया है कि हमारे सभी कर्म वास्तव मे प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं, किंतु अज्ञानी होते हैं व जिनका अन्त:करण अहंकार से मोहित है, वे समझते हैं कि कर्म उन्होंने ही किया है। अर्थात मैं करता हूं, यह अहंकार रख कर वे स्वयं को अनेक प्रकार के बंधनों में बांध लेते हैं। जो भी अहंकार के इस मैं-मैं में फंसते हैं, उनका जीवन अंतत: नरक समान बन ही जाता है। आखिर क्या है यह अहंकार, जो नुक्सानदायक होते हुए भी हम उसे छोडने को तैयार नहीं होते?

 


सुप्रसिद्ध उपन्यासकार सी.एस. लुईस ने लिखा है कि ‘‘अहंकार की तृप्ति किसी चीज को पाने से नहीं अपितु उस चीज को किसी दूसरे की अपेक्षा ज्यादा पाने से होती है।’’ वस्तुत: अहंकार का अर्थ ही अपने को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने का दावा है। इसी वजह से लोग लोभ करते हैं ताकि वे दूसरों से संपन्न दिखें, दूसरों को दबाने की चेष्टा करते हैं ताकि अपनी प्रभुता सिद्ध कर सकें और दूसरों को मूर्ख बनाना चाहते हैं ताकि स्वयं बुद्धिमान सिद्ध हो सकें।

 


याद रखें, अहंकार सदैव दूसरों को मापदंड बनाकर चलता है। दूसरों से तुलना कर अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने की वृत्ति का नाम ही अहंकार है। इतिहास इस बात का गवाह है कि कैसे महान सभ्यताओं, शक्तिशाली राजवंशों और साम्राज्यों ने अहंकारी, अभिमानी और घमंडी शासकों के हाथों में गिरकर अपने मूल अस्तित्व को ही मिटा दिया।

 


महाभारत में इस प्रकार के कई प्रसंग आते हैं, जब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के अभिमान का मर्दन किया और उसे भगवद् प्राप्ति में सबसे बड़ा अवरोध बताया। इसी प्रकार रामायण में भी नारद के अभिमान का प्रसंग आता है और वह अनुभव करते हैं कि उनके मिथ्या अभिमान के कारण वह भगवान से कितने विमुख होते जा रहे हैं। हमें इस हकीकत को भूलना नहीं चाहिए कि संसार में सबसे महत्वपूर्ण यदि कोई है तो वह सर्व शक्तिमान परमात्मा हैं, जिनको अपनी सत्ता का अहंकार नहीं। इसलिए बेहतर होगा कि हम अहंकार से सदा के लिए मुक्ति प्राप्त करें, अन्यथा यह ऐसी खतरनाक बीमारी है जो हमारे जीवन को संपूर्णत: उजाड़ सकती है।


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