प्राणियों में ऊर्जा स्फूर्ति, उल्लास व क्रियाशीलता बनकर परिलक्षित होता है दुर्गा मंत्र
punjabkesari.in Wednesday, Mar 21, 2018 - 05:06 PM (IST)
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थात: यह अपने भीतर शक्ति के रूप में स्थित देवी की आराधना है। हमें अपने भीतर की शक्ति को पहचानना होगा और उसका सदुपयोग करना होगा। शक्ति अथवा ऊर्जा प्रकृति के रूप में (बाहरी और हमारे भीतर की प्रकृति), उल्लास के रूप में, क्रियाशीलता के रूप में, प्रसन्नता आदि के रूप में अभिव्यक्त होती है। वासंतिक नवरात्रि का पदार्पण भी ऐसे समय में होता है, जब प्रकृति नई ऊर्जा से भरी होती है। प्राणियों में भी यह ऊर्जा स्फूर्ति, उल्लास और क्रियाशीलता बनकर परिलक्षित होती है। लेकिन यदि हम उसे सकारात्मक रूप में क्रियान्वित नहीं कर पाते, तो शक्ति होने के बावजूद हाथियों की तरह निष्क्रिय होकर खूंटे से बंधे रहते हैं या फिर उस ऊर्जा को नकारात्मकता की ओर मोड़ देते हैं। जिस शक्ति का उपयोग हम मदद में या सृजनात्मक कामों में कर सकते हैं, उसका उपयोग विध्वंसक कार्यों में करने लगते हैं। शक्ति के प्रवाह को सकारात्मकता की ओर लाने के लिए नौ दिन शक्ति की आराधना का प्रावधान किया गया होगा।
दुर्गा सप्तशती के अनुसार, मां दुर्गा समस्त प्राणियों में चेतना, बुद्धि, स्मृति, धृति, शक्ति, शांति श्रद्धा, कांति, तुष्टि, दया आदि अनेक रूपों में स्थित हैं। अपने भीतर स्थित इन देवियों को जगाना हमें सकारात्मकता की ओर ले जाता है। भगवान श्रीराम ने शक्ति की उपासना कर बलशाली रावण पर विजय पाई थी। जबकि ‘देवी पुराण’ में उल्लेख है कि रावण शिव के साथ-साथ शक्ति का भी आराधक था। उसने मां दुर्गा से बलशाली होने का वरदान पा रखा था। लेकिन शक्ति ने राम का साथ दिया, क्योंकि रावण अपने भीतर सद्गुण रूपी देवियों को जगा नहीं पाया। तुष्टि, दया, शांति आदि के अभाव में उसका अहंकार प्रबल हो गया। इसलिए देवी की आराधना का एक अर्थ यह भी है कि आप एक ऐसे इंसान बनें, जिसमें शक्ति के साथ- साथ करुणा, दया, चेतना, बुद्धि, तुष्टि आदि गुण भी हों। देवी के रूपों में मां दुर्गा को राक्षसों से संघर्ष करते हुए दिखाया