प्रेरणात्मक कहानी: अंधविश्वास कि आड़ में परम्पराओं को न पनपने दें

punjabkesari.in Wednesday, Jul 05, 2017 - 03:07 PM (IST)

एक महात्मा जी अपने कुछ शिष्यों के साथ जंगल में आश्रम बनाकर रहते थे। एक दिन बिल्ली का एक बच्चा रास्ता भटककर आश्रम में आ गया। महात्मा जी ने उस भूखे-प्यासे बच्चे को दूध-रोटी खिलाई। वह बच्चा वहीं आश्रम में रहकर पलने लगा लेकिन उसके आने के बाद महात्मा जी को एक परेशानी होने लगी। जब वह शाम को ध्यान में बैठते तो वह बच्चा कभी उनकी गोद में चढ़ जाता, कभी कंधे या सिर पर बैठ जाता। महात्मा जी ने अपने एक शिष्य को बुलाकर कहा, ‘देखो मैं जब शाम के ध्यान पर बैठूं तो उससे पहले तुम इस बच्चे को दूर एक पेड़ से बांध आया करो।’

 

अब तो यह नियम हो गया। महात्मा जी के ध्यान पर बैठने से पहले बिल्ली का बच्चा पेड़ से बांधा जाने लगा। एक दिन महात्मा जी की मृत्यु हो गई तो उनका एक काबिल शिष्य उनकी गद्दी पर बैठा। वह भी जब ध्यान पर बैठता तो उससे पहले बिल्ली का बच्चा पेड़ से बांधा जाता। कुछ दिनों तक ऐसा ही चला। बिल्ली का बच्चा बड़ा हो गया। एक दिन बिल्ली की भी मौत हो गई। 

 

सारे शिष्यों की मीटिंग हुई। आखिरकार काफी ढूंढने के बाद एक बिल्ली मिली जिसे पेड़ से बांधने के बाद महात्मा जी ध्यान पर बैठे। इसके बाद उस आश्रम में हर महात्मा के ध्यान के वक्त बिल्ली को बांधे जाने का चलन हो गया। बिल्लियां बदलती रहीं और यह परम्परा बन गई। परम्परा के नाम पर कई चीजें अंधविश्वास में इजाफा करती हैं। जरूरत इस बात की है कि हम अंधविश्वास की ऐसी परम्पराओं को न पनपने दें। हम अच्छी तरह से सोच लें कि कहीं अनजाने में हम अंधविश्वास रूपी बिल्ली तो नहीं पाल रहे?


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News