स्वार्थ के चलते सत्कर्मों को अनदेखा न करें

punjabkesari.in Tuesday, Dec 05, 2017 - 01:51 PM (IST)

मानव जीवन बड़ी मुश्किल से मिलता है। इसलिए इस जीवन में जितने सद्कार्य किए जाएं, उतना अच्छा। पुरुषार्थ किए बगैर भाग्य का निर्माण नहीं हो सकता। मौजूदा संदर्भ में एक सवाल यह उठता है कि कर्म का चयन कैसे किया जाए? विद्वान कहते हैं कि अपनी जिम्मेदारियों को निष्काम भाव से निभाना ही कर्म है और सत्कर्तव्य है। शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति के कर्तव्य तय हैं। शिक्षक को अपने छात्र के प्रति, नेता को राष्ट्र के प्रति, पति को अपनी पत्नी और बच्चों के प्रति, दुकानदार को अपने ग्राहक के प्रति ईमानदार व समर्पित होना चाहिए।

 

सिकंदर और पोरस में युद्ध चल रहा था। सिकंदर को सूचना मिली कि शत्रु देश का एक साधु अपनी जड़ी-बूटियों से उसके घायल सैनिकों का उपचार कर रहा है। सिकंदर ने उस साधु से मुलाकात की और पूछा कि तुम शत्रुओं की सेवा क्यों कर रहे हो? साधु ने मरी हुई एक चींटी उठाई और पूछा, ‘‘क्या तुम इसे जीवित कर सकते हो?’’ जब सिकंदर ने इसका उत्तर ‘नहीं’ में दिया तो साधु ने कहा, ‘‘जब तुम एक चींटी तक को प्राण नहीं दे सकते तो अनगिनत मनुष्यों के प्राण लेने का तुम्हें क्या अधिकार है?’’

 

शास्त्रों में लिखा है कि आपके हर कर्म का फल इसी जीवन में मिलता है। सत्कर्तव्य और कुछ नहीं, बल्कि मानव धर्म का पालन करना है। महर्षि दयानंद किसी स्थान पर विराजमान थे। उन्होंने देखा कि एक मजदूर माल से लदे एक ठेले को चढ़ाई पर ले जा रहा था। भार अधिक होने के कारण मजदूर प्रयासों के बावजूद ठेले को आगे नहीं बढ़ा पा रहा था। इससे नाराज उसका मालिक बेंत से उसे पीट रहा था। महर्षि दयानंद उठे और उस मजदूर की मदद करने लगे। उन्हें सफलता मिल गई, लेकिन यह नजारा देखकर सेठ हाथ जोड़ कर दयानंद के सामने खड़ा हो गया। दयानंद ने उससे कहा कि यह तो उनका कर्तव्य व धर्म था।


तात्पर्य यह कि हर किसी को अपने कर्म के प्रति सचेत रहना चाहिए। यदि हमारे कर्म अच्छे होंगे तो इससे न केवल हमारा व्यक्तित्व बेहतर होगा, बल्कि हमारे आसपास का वातावरण भी सुधरेगा। अक्सर हम अपने स्वार्थ में सद्कर्मों की अनदेखी कर देते हैं। हमें इससे बचना चाहिए।


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