सुख बांटता धनतेरस: कथा के साथ जानें क्यों मनाया जाता है ये त्यौहार

punjabkesari.in Monday, Oct 16, 2017 - 08:36 AM (IST)

दीवाली से पहले पडऩे वाले पर्वों में धनतेरस एक प्रमुख पर्व है। दक्ष प्रजापति की पुत्रियों दिति व अदिति का विवाह महर्षि कश्यप से हुआ था। महर्षि कश्यप द्वारा दिति से दैत्य व अदिति से देवों की उत्पत्ति हुई। सौतेले भाई होने की वजह से वे एक-दूसरे से ईर्ष्या करते थे। दैत्यों ने देवों को अपने बल के प्रयोग से स्वर्ग से निकाल कर उस पर अधिकार कर लिया। 


जब भी दोनों के मध्य युद्ध होता तो देव हमेशा पराजित होते थे। ऐसे में वे सब भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और स्वर्ग वापस पाने का उपाय पूछा। विष्णु जी ने कहा कि अगर आप दैत्यों के साथ मिल कर समुद्र मंथन करेंगे तो आपको अनेक रत्नों के साथ अमृत भी प्राप्त होगा जिसे पीकर आप अमर हो जाएंगे और आपको कोई पराजित नहीं कर सकेगा। देवों ने जब असुरों से समुद्र मंथन और अमृत की बात की तो अमृत के लालच में वे तैयार हो गए।


इसके बाद मंथन के लिए क्षीर सागर को चुना गया व मंदरांचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया। वासुकी नाग को मुख की ओर से दैत्यों ने पकड़ा व पूंछ की तरफ से देवों ने। जैसे ही मंदरांचल पर्वत को समुद्र में डाला तो वह डूबने लगा, तब विष्णु जी ने कच्छप यानी कछुए का रूप धारण कर पर्वत के नीचे जाकर उसका डूबना रोक लिया व सागर मंथन की प्रक्रिया शुरू हो गई जिससे समुद्र से अमूल्य निधियां निकलने लगीं। सागर से निकला ऐरावत हाथी इंद्र ने ले लिया। सभी मनोकामनाएं पूरी करने वाला पारिजात वृक्ष, कामधेनु गाय व अप्सराएं देवलोक में स्थित हो गए। वारुणी सुरा को असुरों ने ग्रहण कर लिया। 


सागर से निकला विष कालकूट भगवान शंकर ने पी लिया जिस कारण वह ‘नीलकंठ’ कहलाए। तत्पश्चात शीतल चंद्रमा निकला जिसने अपनी शीतलता से विष के प्रभाव को थोड़ा कम कर दिया। लक्ष्मी जी भी निकलीं जिन्होंने भगवान विष्णु को वरण किया। अंत में एक दिव्य पुरुष अपने हाथों में अमृत कलश धारण किए प्रकट हुए। ये भगवान धन्वंतरी थे जिन्हें आयुर्वेद का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद देवों व असुरों में अमृत पीने को लेकर विवाद हो गया। ऐसे में विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों को मोह लिया व अमृत कलश देवताओं को दे दिया। इस प्रकार सागर-मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि का अवतार हुआ।


हर साल कार्तिक महीने की कृष्ण त्रयोदशी को इन्हें याद किया जाता है। 


सुख बांटता धनतेरस : देवी लक्ष्मी को धन-समृद्धि की देवी माना जाता है तो इस दिन लक्ष्मी पूजा का विधान है। इस दिन लोग चांदी व सोने के सिक्कों की खरीदारी करते हैं। इसके अतिरिक्त लोग बर्तन भी खरीदते हैं। धनतेरस पर्व सुख-समृद्धि प्रदान करने वाला पर्व ही नहीं बल्कि जीवन में सुख और सौभाग्य बढ़ाने वाला पर्व भी है। आज के समय में लोग धनतेरस पर लक्ष्मी-गणेश अंकित चीजों को तोहफे के रूप में भी देने लगे हैं।
यह तो सब जानते ही हैं कि सुखी जीवन के लिए स्वस्थ शरीर का होना कितना जरूरी है व शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य के बारे में हमें आयुर्वेद ही बताता है। आयुर्वेद को पांचवां वेद कहा गया है जिसके प्रवर्तक भगवान धन्वंतरी हैं।


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