छत्तीसगढ़ के बस्तर की हसीन वादियों में बसा है मां का ये स्वरूप

punjabkesari.in Tuesday, Nov 21, 2017 - 01:24 PM (IST)

भगवान शिव के अपमान को सहन न कर पाई माता सती ने अग्नि में कूद खुद को भस्म कर लिया था। जिस वजह से भगवान शिव क्रोधित हो, माता सती को उठा पूरे ब्रह्माण्ड में घूमने लगे। जहां-जहां भगवान शिव मां सती को लेकर निकले, वहां-वहां उनकेे देह के अंग गिरे और शक्तिपीठ स्थापित हो गए। देवी पुराण में इन शक्ति पीठों की संख्या 51 बताई गई है। लेकिन तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। जबकि कई अन्य ग्रंथों में यह संख्या 108 तक बताई गई है। 

 

तन्त्रचूडामणि के अनुसार माता सती का ये शक्ति छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की हसीन वादियों के दंतेवाड़ा में दंतेश्‍वरी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। दंतेवाड़ा को हालांकि देवी पुराण के 51 शक्ति पीठों में शामिल नहीं किया गया लेकिन इसे देवी का 52 वां शक्ति पीठ माना जाता है। मान्यता है की यहां पर माता सती का दांत गिरा था इसलिए इस जगह का नाम दंतेवाड़ा और माता का नाम दंतेश्वरी देवी पड़ा। दंतेश्‍वरी मंदिर शंखिनी और डंकनी नदियों के संगम पर स्थित है। दंतेश्‍वरी देवी को बस्तर क्षेत्र की कुलदेवी का दर्जा प्राप्त है। इस मंदिर की एक खासियत यह है की माता के दर्शन करने आए गर शख्स को लूंगी या धोती पहनकर आता होता है। मंदिर में सिले हुए वस्त्र पहन कर जानें की मनाही हैं।

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पौराणिक कथा
मान्यता अनुसार बस्‍तर के पहले काकातिया राजा अन्‍नम देव वारंगल से यहां आए थे। उन्‍हें दंतेवश्‍वरी मैय्या का वरदान मिला था। अन्‍नम देव को माता ने वर दिया था कि जहां तक वे जाएंगे, उनका राज वहां तक फैलेगा लेकिन इस पर शर्त ये थी कि राजा को पीछे मुड़कर नहीं देखना होगा और मैय्या उनके पीछे-पीछे जहां तक जाती, वहां तक की जमीन पर उनका राज हो जाता। शर्त के अनुसार जहां अन्‍नम देव के रूकता वहीं   मैय्या ने भी रूक जाना था। अन्‍नम देव ने चलना शुरू किया और वे कई दिन और रात चलते रहे। वे चलते-चलते शंखिनी और डंकनी नदियों के संगम पर पहुंचे। यहां उन्‍होंने नदी पार करने के बाद माता के पीछे आते समय उनकी पायल की आवाज महसूस नहीं की। सो वे वहीं रूक गए और माता के रूक जाने की आशंका से उन्‍होंने पीछे पलटकर देख लिया। माता तब नदी पार कर रही थी। राजा के रूकते ही मैय्या भी रूक गई और उन्‍होंने आगे जाने से इनकार कर दिया। दरअसल नदी के जल में डूबे पैरों में बंधी पायल की आवाज पानी के कारण नहीं आ रही थी और राजा इस भ्रम में कि पायल की आवाज नहीं आ रही है, शायद मैय्या नहीं आ रही है सोचकर पीछे पलट गए। वचन के अनुसार मैय्या के लिए राजा ने शंखिनी और डंकनी नदी के संगम पर एक सुंदर घर यानि मंदिर बनवा दिया। तब से मैय्या वहीं स्‍थापित है। दंतेश्वरी मंदिर के पास ही शंखिनी और डंकनी नदी के संगम पर मां दंतेश्वरी के चरणों के चिन्ह मौजूद है और यहां सच्चे मन से की गई मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है।

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मंदिर परिसर
दंतेवाड़ा में मां दंतेश्वरी की षट्भुजी वाले काले ग्रेनाइट की प्रतिमा अद्वितीय है। 6 भुजाओं में दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशुल और बाएं हाथ में घंटी, पद्य और राक्षस के बाल धारण किए हुए हैं। यह मूर्ति नक्काशीयुक्त है और ऊपरी भाग में नरसिंह अवतार का स्वरुप है। माई के सिर के ऊपर छत्र है, जो चांदी से निर्मित है। वस्त्र आभूषण से अलंकृत है। द्वार पर दो द्वारपाल दाएं-बाएं खड़े हैं जो चार हाथ युक्त हैं। बाएं हाथ सर्प और दाएं हाथ गदा लिए द्वारपाल वरद मुद्रा में है। इक्कीस स्तम्भों से युक्त सिंह द्वार के पूर्व दिशा में दो सिंह विराजमान जो काले पत्थर के हैं। यहां भगवान गणेश, विष्णु, शिव आदि की प्रतिमाएं विभिन्न स्थानों में प्रस्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में सिले हुए वस्त्र पहनकर प्रवेश प्रतिबंधित है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने पर्वतीयकालीन गरुड़ स्तम्भ से अड्ढवस्थित है। बत्तीस काष्ठड्ढ स्तम्भों और खपरैल की छत वाले महामण्डप मंदिर के प्रवेश के सिंह द्वार का यह मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। मांई जी का प्रतिदिन श्रृंगार के साथ ही मंगल आरती की जाती है।

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भुनेश्वरी मंदिर 
मां दंतेश्वरी मंदिर के पास ही उनकी छोटी बहन मां भुनेश्वरी का मंदिर है। मां भुनेश्वरी को मावली माता, माणिकेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। मां भुनेश्वरी देवी आंध्रप्रदेश में मां पेदाम्मा के नाम से विख्यात है और लाखो श्रद्धालु उनके भक्त हैं। छोटी माता भुवनेश्वरी देवी और मांई दंतेश्वरी की आरती एक साथ की जाती है और एक ही समय पर भोग लगाया जाता है। लगभग 4 फुट ऊंची मां भुवनेश्वरी की अष्टभुजी प्रतिमा अद्वितीय है। मंदिर के गर्भगृह में नौ ग्रहों की प्रतिमाएं है। वहीं भगवान विष्णु अवतार नरसिंह, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमाएं प्रस्थापित हैं। कहा जाता है कि माणिकेश्वरी मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में हुआ।

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