प्रमोशन के योग बनते-बनते रह जाते हैं, बुरे दौर को अच्छे दिनों में बदलें

punjabkesari.in Wednesday, Nov 01, 2017 - 10:55 AM (IST)

किसी कंपनी में समीर नामक एक युवक काम करता था। वह अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पित और ईमानदार था। फलत: वह तेजी से तरक्की करते हुए कंपनी में डी.जी.एम. के पद तक पहुंच गया। कंपनी के जी.एम. जल्द ही रिटायर होने वाले थे और समीर को पूरा यकीन था कि उनके रिटायरमैंट के बाद यह पद उसे ही मिलेगा। उसे ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता था जिससे उसकी महत्वाकांक्षा पूरी न हो सके। 


उसमें जी.एम. बनने की योग्यता और अनुभव था, परंतु जब नियुक्ति का वक्त आया तो उसे दरकिनार करते हुए बाहर से एक व्यक्ति को लाकर जी.एम. की कुर्सी पर बिठा दिया गया। उसे इस तरह दरकिनार किए जाने से उसकी पत्नी बेहद आहत हुई और वह चाहती थी कि समीर तुरंत इस्तीफा देकर मालिकों को बता दे कि उन्होंने उसके साथ कितनी बड़ी नाइंसाफी की है। 


किंतु समीर व्यावहारिक सोच रखता था। उसे लगा कि इन परिस्थितियों में शायद सबसे अच्छा यही रहेगा कि वह नए आदमी के साथ काम करे और उसकी हर तरह से मदद करे। इस तरह समीर पहले की तरह ही कंपनी में पूरी निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करता रहा। जल्द ही उसने अपने नए जी.एम. का भरोसा भी जीत लिया। जी.एम. चूंकि उस कंपनी में नया था, लिहाजा उसे कदम-कदम पर समीर के सहयोग की जरूरत पड़ती और समीर भी उसे कभी निराश नहीं करता।


कुछ महीने बाद संयोग कुछ ऐसा बना कि नए जी.एम. को एक खास प्रोजैक्ट का प्रभारी बनाकर अन्यत्र भेज दिया गया। इसके बाद पुन: जी.एम. के चयन की बारी आई। मालिक तो उसके काम से पहले ही खुश थे, इसके अलावा नए जी.एम. ने भी अपने उत्तराधिकारी के तौर पर समीर के नाम की जोरदार पैरवी की। इस तरह समीर का जी.एम. की कुर्सी तक पहुंचने का वर्षों पुराना सपना पूरा हो गया।


तात्पर्य यह है कि इंसान को अपनी मेहनत और ईमानदारी का फल देर-सवेर अवश्य मिलता है। यदि कभी हमें मनमुताबिक नतीजे न मिलें तो भी हमें निराश नहीं होना चाहिए और न ही किसी के प्रति नफरत पालनी चाहिए। नकारात्मक विचारों से न केवल हम मानसिक रूप से कमजोर बनते हैं, बल्कि हमारी चिंतन-प्रक्रिया भी अव्यवस्थित हो जाती है। वहीं सकारात्मक भाव अपनाने से हमारा मन प्रसन्न रहता है और हमारे लिए अपने लक्ष्य तक पहुंचना आसान हो जाता है।


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