ये काम करने से आप पर देवता बरसाएंगे फूल, दुनिया की सारी सुख-सम्पदाएं टूट पड़ेंगी

punjabkesari.in Thursday, May 25, 2017 - 12:40 PM (IST)

वैसे नोट बड़ी गंदगी फैलाते हैं। दुनिया में अधिकांश संक्रामक रोग इन्हीं नोटों की वजह से फैलते हैं, क्योंकि ये नोट पता नहीं किन-किन और कैसे-कैसे लोगों के हाथों में जाते हैं और वहां से कैसे-कैसे रोग लेकर आते हैं? पापी से पापी और गलत आदमियों के पास नोट जाते हैं, उनके पास रहते हैं और जब वहां से तुम्हारे पास आते हैं, तो एक-एक नोट सैंकड़ों बीमारियों और बुराइयों को लेकर आता है। तुमने देखा होगा कि जब आदमी के पास पैसा आता है तो उसका चाल-चलन, उसके आचार-विचार, उसकी बोल-चाल रातों-रात बदल जाती है।


धन की शुद्धि करके ही धन को स्वीकार करना चाहिए, इससे जीवन में शुद्धि घटित होगी। तुम्हारे पास जो कुछ भी है, जो रुपए पैसे हैं, उन्हें तुम अपना मत समझना। तुम तो स्वयं को प्रभु का भंडारी समझो। गांधी जी ने इसे ट्रस्टीशिप का सिद्धांत कहा है। धर्म धन का अनुगामी है। धर्म के पीछे-पीछे धन चलता है। तुम धर्म के पीछे-पीछे चलो, धन तुम्हारे पीछे-पीछे चलेगा। 


भगवान महावीर की वाणी है- तुम धर्म के लिए हाथ बढ़ाओ, तुम्हारे हाथ कल्प-वृक्ष हो जाएंगे, तुम धर्म के लिए चिंता करो, तुम्हारी चिंता चिंतामणि हो जाएगी, तुम धर्म के लिए कामना करो, तुम्हारी कामना कामधेनु बन जाएगी, तुम धर्म के लिए दान दो, धन को धर्म से जोड़ो, तुम्हारे भंडार अक्षय हो जाएंगे और यदि धर्म के लिए मरण का वरण भी करना पड़े तो अमर हो जाओगे।


तो धर्म चिंतामणि रत्न है। यह चिंतामणि रत्न केवल हमारे मनोरथों, मनोकामनाओं को ही पूरा नहीं करता है, बल्कि जीवन-मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। धर्म का चिंतन करो, तो जीवन की चिंताएं स्वत: नि:शेष हो जाएंगी। मैं तुमसे एक बार फिर कहता हूं, अब तक जो हुआ उसे भूल जाओ। अतीत की भूलों को लेकर आंसू बहाने की अपेक्षा अपने वर्तमान को सम्यक बनाने की साधना करो। यदि तुम्हारा सारा जीवन पाप और वासना में चला गया तो कोई बात नहीं, कोई चिंता नहीं जो शेष जीवन बचा है, उसे संभाल लो, उसे सुधार लो बस सब ठीक हो जाएगा। कुएं में पानी भरने जाओ और यदि भूल से हाथ की रस्सी पूरी सरक जाए तथा पूरी बाल्टी डोरी सहित हाथ से निकल जाए और मात्र चार अंगुल डोरी तुम्हारे हाथ में शेष रह जाए तो पूरी बाल्टी को वापस निकाला जा सकता है।


ठीक इसी तरह यदि तुम्हारा पूरा जीवन पाप और वासना में निकल गया है, जीवन के पचास-साठ साल सांसारिकताओं में निकल गए हैं तो कोई चिंता की बात नहीं। जीवन के जो शेष दो-चार साल, दो-चार महीने, दो-चार सप्ताह, दो-चार दिन, दो-चार घंटे बचे हैं, जीवन की चार-अंगुल आयुष्य की डोरी तो तुम्हारे हाथ में बची है, उसी को प्रभु को पकड़ा दो, उसी में सच्चे मन से प्रभु का स्मरण कर लो, धर्म-ध्यान कर लो तो पूरा जीवन पकड़ में आ जाएगा और यदि पूरा जीवन पकड़ में आ गया तो फिर देवता तुम पर फूल बरसाएंगे तथा तुम पर प्रभु की कृपा बरसेगी और तुम पर दुनिया के सारे सुख, सारी सम्पदाएं टूट पड़ेंगी। 


 —मुनिश्री तरुण सागर जी


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