Business अच्छी तरह चलता रहे, जरूरी नहीं है लक्ष्मी पूजन किया जाए

punjabkesari.in Wednesday, Jul 26, 2017 - 11:37 AM (IST)

डेरा गाजी खान में राय साहब रघुनाथ दास हकीम अपने युवा पुत्र श्याम दास के साथ रोगियों की सेवा किया करते थे। पूरा परिवार चैतन्य महाप्रभु का अनन्य भक्त था। भारत विभाजन होने के बाद उनके पूरे परिवार को डेरा गाजी खान से पलायन करना पड़ा। वहां से वह वृंदावन पहुंचे और अपने परिवार के साथ रहने लगे। श्याम दास हकीम जी ने साधना के साथ-साथ जीविकोपार्जन व सेवा के उद्देश्य से रोगियों की चिकित्सा का काम शुरू किया।


एक छोटे से मकान में औषधालय खोला। उन्होंने संकल्प लिया कि वह अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण की लीलाभूमि के गरीबों व हरिजनों की चिकित्सा नि:शुल्क करेंगे। दीवाली आने वाली थी। पूरा वृंदावन दीवाली के रंग में रंग गया था। हर ओर रोशनी की तैयारियां चल रही थीं, केवल श्याम दास हकीम का औषधालय सूना पड़ा था। तभी औषधालय की ओर उनके एक संबंधी आए। वह बोले, ‘‘अरे आज दीवाली है। तुमने लक्ष्मी पूजन की यहां कोई भी तैयारी नहीं की। औषधालय में लक्ष्मी पूजन अवश्य होना चाहिए ताकि तुम्हारा काम अच्छी तरह चलता रहे।’’


यह सुनकर श्याम दास हकीम बोले, ‘‘लक्ष्मी पूजन तो ज्यादा से ज्यादा आर्थिक लाभ की आकांक्षा से किया जाता है। क्या मैं पूजन के समय यह कामना करूं कि ज्यादा से ज्यादा लोग बीमार होकर यहां आएं? भला यह कैसा पूजन हुआ? मुझे पता है कि लक्ष्मी उस व्यक्ति से खुश होती है जो अपने काम को निष्काम भाव से करता है।’’ 


यह सुनकर संबंधी का सिर शर्म से झुक गया। वह इस बात को जानता था कि श्याम दास हकीम गरीबों का मुफ्त इलाज करते हैं और अन्य लोगों से भी केवल दवाई की लागत मात्र लेकर उनकी सेवा करते हैं। 


संबंधी बोला, ‘‘सही मायनों में तो आज लक्ष्मी आप पर ही सबसे ज्यादा प्रसन्न होंगी।’’


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News