धन्य है धायमाता की राजभक्ति, अपनी कोख उजाड़ कर बढ़ाया देश का गौरव

punjabkesari.in Friday, Jun 30, 2017 - 11:44 AM (IST)

राणा सांगा मेवाड़ का राजा था। उसकी रानी का नाम कर्णावती था। उनके एक पुत्र हुआ जिसका नाम उदय सिंह रखा गया। उदय सिंह के जन्म से सारे राज्य में खुशी छा गई। उसके थोड़े दिनों के बाद ही राणा सांगा की अचानक मृत्यु हो गई। इससे रानी कर्णावती को बहुत आघात लगा। वह बीमार रहने लगी। इससे राजपूत सरदारों को भारी उलझन हुई। सबको यही चिंता सता रही थी कि उदय सिंह तो बिल्कुल छोटा बालक है। जब तक वह बड़ा नहीं होता तब तक मेवाड़ का राजकाज कौन संभालेगा? बहुत सोच-विचार करने के बाद राजपूत सरदारों ने राणा सांगा के एक दूर के संबंधी बनवीर को मेवाड़ के प्रबंधक के रूप में नियुक्त करने का निश्चय किया।


रानी कर्णावती को लगा कि अब वह अधिक समय तक जीवित नहीं रहेगी इसलिए उन्होंने अपनी विश्वस्त धायमाता (दासी) पन्ना से कहा, देखो अब मेरी मौत नजदीक है। मेरा बेटा उदय आज से तेरे भरोसे है। तू इसे अपना ही पुत्र समझ कर इसका पालन-पोषण करना।


इतना बोलते-बोलते रानी कर्णावती हांफने लगी। पन्ना ने उसे पानी पिलाया। थोड़ी राहत हुई। रानी कर्णावती ने पन्ना से कहा, ‘‘मेरा बेटा मेवाड़ का भावी राजा है। जब तक यह राज्य करने योग्य नहीं हो जाता, तब तक तू इसका लालन-पालन सावधानी पूर्वक करेगी, इसका मुझे वचन दे।’’


पन्ना की आंखें भर आईं। वह बोली, ‘‘रानी मां, मैं अपने प्राणों की बाजी लगाकर भी राजकुमार की रक्षा करूंगी।’’


‘‘भगवान तुम्हारा भला करे।’’ इस प्रकार पन्ना को आशीर्वाद देकर रानी स्वर्ग सिधार गई।


पन्ना अपने पुत्र के साथ-साथ नन्हे उदय सिंह का भी खूब प्रेम और लगन से पालन-पोषण करने लगीं।


राज्य प्रबंधक बनवीर क्रूर, घमंडी और स्वेच्छाचारी था। उसने सोचा, ‘‘यदि उदय सिंह जीवित न रहे तो मेवाड़ की गद्दी पर हमेशा के लिए मेरा अधिकार हो जाएगा। इसको तो मुझे हटाना ही पड़ेगा।’’


चतुर पन्ना को बनवीर के इरादे की खबर थी। इसलिए उन्होंने अपने विश्वस्त आदमियों को उसके आस-पास लगा दिया। एक रात बनवीर चुपचाप पन्ना के घर की ओर चला। पन्ना के एक विश्वस्त नौकर ने उसे आते देख लिया। वह तुरंत पन्ना के पास जाकर बोला, ‘‘पन्ना! बनवीर इस ओर जा रहा है। यदि उदय सिंह को बचाना हो तो जल्दी ही कोई उपाय करो।’’


आने वाली मुसीबत का ख्याल आते ही पन्ना कांप उठी। उसने उदय सिंह के शरीर से शाही कपड़े और गहने उतार कर अपने पुत्र को और पुत्र के कपड़े उदय सिंह को पहना दिए। फिर उसने अपने पुत्र को राजकुमार के पलंग पर सुला दिया। उसने राजकुमार उदय सिंह को एक टोकरी में रखकर उसे फूल-पत्तों से ढक दिया। टोकरी उस विश्वस्त नौकर को देते हुए वह बोली, ‘‘इस टोकरी को तू ले जा और गणेश-मंदिर के पास खड़ा रह। मैं थोड़ी ही देर में वहां आ रही हूं।’’


नौकर टोकरी उठाकर वहां से निकल गया। थोड़ी देर में बनवीर पन्ना के पास आ पहुंचा। तलवार निकालकर वह जोर से चिल्लाया, ‘‘उदय सिंह कहां है? चल मुझे जल्दी दिखा।’’


भय से कांपती हुई पन्ना ने उदय सिंह के पलंग पर सोए हुए अपने पुत्र की ओर इशारा कर दिया।


बनवीर ने बिना कुछ देखे-समझे उस बालक को तलवार के एक ही वार से समाप्त कर दिया। इसके बाद वह पन्ना को धमकी देते हुए बोला, ‘‘खबरदार! यदि तुने इस हत्या की बात किसी से कही तो तेरी दशा इससे भी बुरी होगी।’’


इतना कह कर बनवीर वहां से चला गया। अपने बच्चे की नृशंस हत्या को देख कर पन्ना का मातृ हृदय तड़प उठा। फिर भी अपने कलेजे को कठोर कर, बालक की लाश कपड़े से ढक कर तुरंत ही वह गणेश मंदिर पहुंच गई। नौकर के हाथों से उदय सिंह को लेकर उसने कहा, ‘‘बनवीर ने मेरे बेटे को उदय सिंह समझ कर मार दिया है। तुम जाकर मेरे बेटे की लाश की अंत्येष्टि की व्यवस्था करो।’’


इसके बाद रात के अंधेरे में पन्ना उदय सिंह को लेकर वहां से रवाना हो गई। सुबह वह गिरती-पड़ती एक छोटे से राज्य में आ पहुंची। उस राज्य का राजा असा साह बहुत भला और दयालु था। पन्ना उसके पास जाकर बोली, ‘‘महाराज, यह बालक मेवाड़ का भावी राजा उदय सिंह है। इस समय इसकी जिंदगी खतरे में है इसलिए इसे मैं आपके पास छोडऩे आई हूं। आप इसकी रक्षा कीजिए। मेवाड़ हमेशा आपके इस उपकार को याद रखेगा।’’


असा साह ने बालक की रक्षा का उत्तरदायित्व स्वीकार लिया। पन्ना संतुष्ट होकर मेवाड़ लौट आई। उदय सिंह असा साह की देखरेख में बड़ा होने लगा।


समय गुजरता गया। बनवीर लोगों पर अपार अत्याचार कर रहा था। मेवाड़ की जनता उससे परेशान हो गई थी।


इसी समय पन्ना ने उदय सिंह के जीवित होने की घोषणा कर दी। उसने राजपूत सरदारों से कहा, ‘‘उदय सिंह जीवित है। असा साह के राज्य में उनकी देखरेख में उदय सिंह का पालन-पोषण हो रहा है। जाओ, उसे वहां से लाकर मेवाड़ की गद्दी पर बैठाओ।’’


बनवीर को जब इस बात का पता चला तो उसने गर्जना करते हुए कहा, ‘‘उदय सिंह? वह अब कहां से आएगा? उदय सिंह को तो मैंने कभी का परलोक पहुंचा दिया है।’’


पन्ना ने उससे कहा, ‘‘मूर्ख बनवीर! तू मेरे बेटे का हत्यारा है। उदय सिंह समझ कर जिसे तूने मार दिया था, वह मेरा बेटा था। वह मेरा बेटा था। रानी मां को दिए हुए वचन के अनुसार मैंने उदय सिंह की जिंदगी बचाई थी । अब उदय सिंह ही मेवाड़ का असली राजा है।’’ 


पन्ना के बेटे की हत्या के अपराध में राजपूत सरदारों ने बनवीर को जेल में बंद कर दिया। सरदारों ने उदय सिंह को असा साह के यहां से लाकर धूमधाम से मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया।


मेवाड़ के राजपूतों ने कहा, ‘‘पन्ना! तुम धन्य हो। धन्य है तुम्हारी राजभक्ति और तुम्हारा बलिदान। तुम्हारे जैसी माताएं ही हमारे देश का गौरव बढ़ा सकती हैं।’’


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