शुभ फल प्रदाता कन्या लग्न का स्वामी बुध, चतुराई से निकलवा लेते हैं काम

punjabkesari.in Thursday, Jan 18, 2018 - 01:50 PM (IST)

कन्या लग्न एक द्विस्वभाव लग्न है तथा उसका स्वामी बुध है। इस लग्न की प्रकृति सौम्य है और राशि स्त्री है। यह एकमात्र ऐसी राशि है, जिसका स्वामी बुध इसी राशि के 15 अंश पर परमोच्च होता है तथा बुध का मूल त्रिकोण भी इस राशि के 16 से 20 अंश तक होता है। यह शीर्षोदय राशि है तथा दक्षिण दिशा पर इसका अधिकार है। यह राशि पेट के रोगादि तथा नियमितताओं से संबंधित है। इसका स्वामी बुध दशमेश भी होता है और बहुत शुभ फल प्रदाता होता है। बुध लग्न तथा दशम भाव में अति शुभ फल प्रदान करता है। मंगल और शनि के प्रभाव में लग्न और बुध हों, तो अशुभ होता है।


कन्या लग्न में जन्म लेने वाले जातक की बुद्धि प्रखर होती है। विद्याध्ययन में वास्तविक रुचि होती है। वे बहुत जल्दी बातों से प्रभावित हो जाते हैं तथा प्राय: उनमें उतावलापन भी होता है। ऐसे जातकों को अपने ऊपर पूर्ण विश्वास नहीं होता। किसी भी कार्य को प्रणालीबद्ध ढंग से करते हैं। गणित तथा किसी भी बात के छिद्रान्वेषण में रुचि होती है।


कन्या लग्न में जन्म लेने वाले लोग प्राय: मंझोले कद के होते हैं। उनके गाल भरे हुए होते हैं तथा उनके स्वभाव में स्त्रीवर्गीय स्वभाव की झलक टपकती है। उनके बाहु और कंधे छोटे-छोटे होते हैं। किसी कार्य को कब करना चाहिए, इसे वह जातक जानता है। वह सत्यवादी, न्यायप्रिय, दयालु, धैर्यवान और स्नेही होता है तथा उसकी बुद्धि सुंदर होती है।


कन्या लग्न का जातक किसी दूसरे के सुख-दुख की उपेक्षा नहीं करता। उसे दूसरे से काम लेने में भी हिचकिचाहट नहीं होती। बिना विचारे कुछ नहीं करता। उसको दूसरों के कार्यों में गहराई तक जाने में रुचि होती है। ऐसा जातक वाणिज्य, व्यवसाय से बड़ा निपुण होता है। विचारवान तथा मितव्ययी होता है। भले ही बहुत साहसी न हो, परंतु धैर्यवान अवश्य होता है। उस पर श्रेयस्कर लोगों की कृपा होती है।


कन्या लग्न के जातकों का बुद्धि कौशल उनकी कम अवस्था में ही दिखाई देने लगता है। वे बहुत भावुक होते हैं, परंतु बुद्धू नहीं होते हैं। चतुराईपूर्वक अपना काम निकाल लेते हैं। किसी से लडऩे में विश्वास नहीं रखते। दूसरों पर उनका बहुत प्रभाव होता है। ऐसे जातक को स्नायु-तंत्र की व्याधियां या लकवे जैसी बीमारी होना संभव होता है।


कन्या लग्न के लिए बुध तो शुभ होता ही है, परंतु शुक्र भी द्वितीयेश व नवमेश होने के कारण अति शुभ फल प्रदाता होता है, मंगल, बृहस्पति अशुभ होते हैं। शनि भी कुछ विशेष स्थितियों में ही शुभ फल देता है। लग्न या लग्नेश पर मंगल अथवा शनि का प्रभाव पड़ रहा हो, तो बड़ा अनिष्ट होता है। मंगल तृतीयेश तथा अष्टमेश होने के कारण अपने आप में अशुभता समेटे रहता है। यदि वहीं बुध अथवा लग्न को प्रभावित करे, तो उल्लेखनीय है कि मंगल, बुध शत्रुवत हैं। ऐसी स्थिति में बुद्धि संबंधी या नर्वस सिस्टम से संबंधित या फिर त्वचा संबंधी विकार होता है। 


शुक्र सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करता है तथा बुध और शुक्र की युति राजयोगकारक होती है। यदि दशम में बुध-शुक्र संयुक्त हों, तो प्रथम श्रेणी के राजकीय प्रशासनात्मक सेवा करने वाला होता है। 


बुध तथा शुक्र का योग यदि पापाक्रान्त न हो, तो दशम और लग्न के अतिरिक्त सप्तम और एकादश भाव में भी श्रेष्ठ फल प्रदान करता है। 
 


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