एस्ट्रो कनैक्शन: कैसे बनता है पति-पत्नी और वो का रिश्ता

punjabkesari.in Saturday, Mar 10, 2018 - 11:39 AM (IST)

दांपत्य स्त्री-पुरुष के संतुलन का पर्याय है। यह धरती व आकाश के संयोजन व वियोजन का प्रकटीकरण है। आकाश का एक पर्याय अंबर भी है जिसका अर्थ वस्त्र है। वह पृथ्वी को पूर्णता से आवरण में रखता है। वह पृथ्वी के अस्तित्व से अछूता नहीं है। पुरुष या आकाश में कोई भेद नहीं है। आकाश तत्व बृहस्पति का गुण है। स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव का कारक गुरु ही है। गुरु अर्थात गंभीर, वह जो अपने दायित्व के प्रति गंभीर रहे। क्या आज के पति अपने धर्म का पूर्ण निर्वाह कर पा रहे हैं ? आर्थिक युग में स्त्री घर छोड़कर बाहर निकल रही है। ऐसे में स्वाभाविक है वायरस (राहु) का फैलना जिससे निर्मित होता है गुरु चांडाल योग। इस विषय में ज्योतिष के सिद्धांतानुसार जानते हैं की पति-पत्नी और वो के बीच का एस्ट्रो कनैक्शन।


यदि लग्न या चंद्र से सप्तम भाव में नवमेश या राशि स्वामी या अन्य कारक ग्रह हों या उस पर उनकी दृष्टि हो तो शादी से सुख प्राप्त होगा व जीवनसाथी भाग्यशाली होगा। यदि द्वितीयेश, सप्तमेश व द्वादशेश केंद्र या त्रिकोण में हो व बृहस्पति से दृष्ट हों, तो सुखमय वैवाहिक जीवन रहेगा। यदि सप्तमेश व शुक्र समराशि में हों, सातवां भाव भी सम राशि हो व पंचमेश और सप्तमेश सूर्य के निकट न हों या अन्य प्रकार से कमजोर न हों, तो सुयोग्य संतति प्राप्त होती है। यदि गुरु सप्तम भाव में हो, तो जातक जीवनसाथी से बहुत प्रेम करता है। सप्तमेश यदि व्यय भाव में हो, तो पहली जीवनसाथी के होते हुए भी जातक दूसरा संबंध बनाता है। इस योग के कारण पति या पत्नी की मृत्यु भी हो सकती है। यदि सप्तमेश पंचम या पंचमेश सप्तम भाव में हो, तो जातक शादी से संतुष्ट नहीं रहता। स्त्री की कुंडली में सप्तम भाव में चंद्र व शनि के स्थित होने पर दूसरी शादी की संभावना रहती है जबकि पुरुष की कुंडली में ऐसा योग होने पर शादी या संतति नहीं होती है। 


लग्न में बुध या केतु हो, तो पत्नी बीमार रहती है। सातवें भाव में शनि और बुध स्थित हों, तो वैधव्य या विधुर योग बनता है। यदि सातवें भाव में मारक राशि और नवांश में चंद्र हो, तो पत्नी दुष्ट होती है। यदि सूर्य राहु से पीड़ित हो, तो जातक को अन्य व्यक्ति के साथ प्रणय के कारण बदनामी उठानी पड़ती है। सूर्य मंगल से पीड़ित हो, तो वैवाहिक जीवन कष्टमय होता है। यदि शुक्र व मंगल नवांश में स्थान परिवर्तन योग में हों, तो जातक विवाहेतर संबंध बनाता है। जातक के सप्तम भाव में यदि शुक्र, मंगल और चंद्र हों, तो वह अपने जीवनसाथी की स्वीकृति से विवाहेतर संबंध बनाता है जैसे की मेट्रो सिटी में पार्टनर स्वैपिंग आम चलन हो चुका है। मंगल आवेश में वृद्धि करता है व शुक्र सम्मोहक पहलुओं से जोड़ता है। शुक्र रोमांस व सम्मोहक पहलुओं का द्योतक है। यह लैंगिक सौहार्द, अनुरक्ति, विवाह, वंशवृद्धि, शारीरिक सौंदर्य और प्रेम का कारक है। मंगल बल, ऊर्जा, आक्रामकता का द्योतक है। जब शुक्र के साथ मंगल की युति हो, तो विषय वासना की प्रचुरता रहती है। 


मंगल यदि सातवें घर में हो तो जातक विवाहेतर संबंध स्थापित करता है, जिससे उसका वैवाहिक जीवन तनावयुक्त होता है। मंगल यदि आठवें घर में हो तो जातक जीवनसाथी के साथ धोखा करता है। शुक्र व बुध यदि चौथे घर में हों तो जातक के विवाहेतर संबंध बनते हैं। शुक्र यदि चौथे, आठवें या 12वें राशि में हो और मंगल से प्रभावित हो तो भी जातक के अन्यों के साथ संबंध होते हैं। लग्नेश यदि दूसरे घर में अथवा दूसरे घर का स्वामी सातवें या दसवें घर में हो, तो भी जातक के किसी न किसी प्रकार से विवाहेतर संबंध बनते हैं। शुक्र व मंगल व्यक्ति को भौतिकवादी, मनोरंजनप्रिय, शौकीन, आडंबरी और विषयी बनाते हैं। यदि ये दोनों विपरीत दृष्टि दे रहे हों, तो विषय संबंधी कठिनाई और वैवाहिक जीवन में समस्या आती है। शुक्र यदि मंगल व राहु से युति कर रहा हो, तो वह जातक को व्यभिचारी बना देता है। यदि अंर्त ग्रस्त क्षेत्र, गुरु, बुध या चंद्र न हो, तो जातक में कामुकता प्रबल होती है। शुक्र पुरुष की कुंडली और गुरु स्त्री की कुंडली में दांपत्य का कारक है। 


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com


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