अजा एकादशी व्रत: ये है व्रत विधि, कथा और पारण समय

punjabkesari.in Wednesday, Aug 16, 2017 - 05:23 PM (IST)

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अजा नाम से प्रसिद्घ है तथा इसे अन्नदा एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी के व्रत से जीव के जहां जन्म-जन्मांतरों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, वहीं उनके संताप मिटने से भाग्य भी उदय हो जाता है। जिस कामना से कोई यह व्रत करता है उसकी वह सभी मनोकामनाएं तत्काल ही पूरी हो जाती हैं। इस व्रत में भगवान विष्णु जी के उपेन्द्र रुप की विधिवत पूजा की जाती है। इस बार अन्नदा एवं अजा एकादशी का व्रत 18 अगस्त को है तथा इसी दिन वत्स द्वादशी भी है तथा भगवान को प्रिय गाय और बछड़ों का पूजन करना चाहिए तथा उन्हें गुड़ और घास भी खिलानी चाहिए।   

 
कैसे करें व्रत- प्रत्येक एकादशी का व्रत करने से पूर्व जैसे संकल्प करने का विधान है वैसे ही इस एकादशी को भी पहले हाथ में जल लेकर सच्चे मन एवं भावना से संकल्प करना चाहिए तथा सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान विष्णू जी का धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प एवं फलों सहित पूजन करना चाहिए। एक समय फलाहार करना चाहिए। तुलसी का रोपण, सिंचन और पूजन करने से प्रभु अति प्रसन्न हो जाते हैं और हरिनाम संकीर्तन करने से अपार कृपा का फल मिलता है। भगवान सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापक हैं तथा बिना मांगे ही अपने भक्त की सारी स्थिति को जानकर उसके सभी कष्टों और चिंताओं को मिटा देते हैं। जो भक्त केवल भगवान की भक्ति ही सच्चे भाव से करते हैं उन पर भगवान वैसे ही कृपा करते हैं जैसे अपने मित्र सुदामा पर उन्होंने बिना कुछ कहे ही सब कुछ दे डाला, इसलिए भगवान से उनकी सेवा मांगने वाले भक्त सदा सुखी एवं प्रसन्न रहते हैं। 


क्या है व्रत कथा- सतयुग में सूर्यवंशी चक्रवर्ती राजा हरीशचन्द्र हुए जो बड़े सत्यवादी थे। एक बार उन्होंने अपने वचन की खातिर अपना सम्पूर्ण राज्य राजऋषि विश्वामित्र को दान कर दिया तथा दक्षिणा देने के लिए अपनी पत्नी एवं पुत्र को ही नहीं स्वयं तक को दास के रुप में एक चण्डाल को बेच डाला। अनेक कष्ट सहते हुए भी वह सत्य से विचलित नहीं हुए तब एक दिन उन्हें ऋषि गौतम मिले जिन्होंने उन्हें अजा एकादशी की महिमा सुनाते हुए यह व्रत करने के लिए कहा। राजा हरीश्चन्द्र ने अपनी सामर्थ्यानुसार इस व्रत को किया जिसके प्रभाव से उन्हें न केवल उनका खोया हुआ राज्य प्राप्त हुआ बल्कि परिवार सहित सभी प्रकार के सुख भोगते हुए अंत में वह प्रभु के परमधाम को प्राप्त हुए। अजा एकादशी व्रत के प्रभाव से ही उनके सभी पाप नष्ट हो गए तथा उन्हें अपना खोया हुआ राज्य एवं परिवार भी प्राप्त हुआ था। 


क्या है पुण्यफल- भगवान को एकादशी परम प्रिय है तथा इसका व्रत करने वाले भक्त संसार के सभी सुखों को भोगते हुए अंत में प्रभु के परम धाम को प्राप्त करते हैं। एकादशी में रात्रि जागरण की अत्यधिक महता है। इस दिन किए गए दान का भी कई गुणा अधिक पुण्यफल प्राप्त होता है। जिस कामना से कोई एकादशी व्रत करता है उसकी सभी कामनाएं बड़ी जल्दी पूरी हो जाती हैं। 


क्या कहते हैं विद्वान- अमित चड्डा का कहना है कि एकादशी व्रत में अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। बहुत से भक्त तो यह व्रत केवल जल ग्रहण करके करते हैं तथापि इस व्रत में केवल एक समय फलाहार करने का विधान है। व्रत का पारण अगले दिन यानि द्वादशी तिथि (19 अगस्त) को विधिवत पूजन करने के पश्चात करना चाहिए। इस व्रत का पारण  प्रात: 6.06 से पहले किया जाना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन तथा अपनी सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए। रात्रि में जागरण करने से प्रभु की अपार कृपा सदा भक्तों पर बनी रहती है।


वीना जोशी
veenajoshi23@gmail.com


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