सूर्य नमस्कार का रहस्य जानने के बाद घर पर करें हर रोग का इलाज

punjabkesari.in Saturday, Jul 29, 2017 - 06:44 AM (IST)

सूर्य नमस्कार सूर्य की ओर मुख करके किया जाता है। इससे सूर्य की किरणों का सीधा प्रभाव प्रणामकर्ता पर पड़ता है। इसके फलस्वरूप अगर उसकी किसी वाहिनी में कहीं रक्त जमा हुआ हो तो वह पिघलकर स्वाभाविक गति से नाडिय़ों में प्रवाहित होने लगता है। इससे रक्तचाप नियंत्रित हो जाता है।


सबसे पहले सीधे खड़े हो जाइए, फिर दोनों हाथों को, पंजों को नमस्कार की स्थिति में जोड़कर अंगूठों को कंठकपूर से लगाइए। तदनंतर दोनों नासापुटों से धीरे-धीरे श्वास खींचिए। श्वास को भर लीजिए। फिर दोनों हाथों को ऊपर की ओर ले जाइए। शरीर के ऊपरी भाग को तानकर पीछे की ओर इतना झुकाइए कि जिससे पीछे की ओर गिरने की संभावना न हो। वक्षस्थल का तनाव आगे की ओर होना चाहिए।


तदुपरांत ऊपर की ओर ताने हुए हाथों को सीधे करते हुए पीछे की ओर तने हुए शरीर के भाग को भी सीधा कर लें फिर धीरे-धीरे दोनों हाथों को समान रूप से नीचे की ओर लाते हुए अपने शरीर को खड़े-खड़े इस प्रकार दोहरा कर लें कि हाथों की उंगलियां पैरों के पंजों का स्पर्श करने लगें। अपनी नाक को दोनों जांघों के मध्य में रखें। 


सूर्य नमस्कार सर्वांगासन है। इसके करने से सभी अंगों का व्यायाम होता है। किसी योग्य शिक्षक से इसको सीखकर पूर्ण सूर्य नमस्कार किया जाए तो अनेक आसन करने की आवश्यकता नहीं रहती।


सूर्य नमस्कार शरीर को शांति प्रदान करता है। मानसिक उत्तेजना और मस्तिष्क का तनाव दूर करता है। शरीर के पृष्ठ भाग में रहने वाली अकडऩ दूर होती है। समस्त शरीर को समान रूप से स्वस्थ रखने में सहायक सिद्ध होता है। इसके परिणामस्वरूप सूर्य की किरणें रोगी के फुफ्फुसों में प्रविष्ट होकर उसके रोगों को नष्ट करती हैं। इस क्रिया से शरीर और मन दोनों ही स्वस्थ रहते हैं।


सूर्य नमस्कार का महत्व क्या है?
प्रत्येक पदार्थ चाहे वह जड़ हो या चेतन, ऊर्जा का ही एक रूप है और उसकी परिणति भी ऊर्जा में ही होनी है। इतनी ही नहीं उसके जीवन काल के विकास के लिए आवश्यक क्रिया शक्ति भी ऊर्जा से ही प्राप्त होती है। ब्रह्मांड में ऊर्जा का अप्रतिम स्रोत सूर्य ही है। अत: समस्त विश्व का आधार सूर्य है। सूर्य सोचने-समझने एवं क्रिया करने की शक्ति प्रदान करता है। अगर किसी प्रकार मनुष्य सूर्य से सीधा संबंध स्थापित करके उसकी शक्ति को अपने भीतर भरने की साधना कर सके तो नि:संदेह उसका शरीर क्रमश: रूपांतरित होते हुए दिव्यता की उस स्थिति को प्राप्त कर लेगा जहां काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, रोग, मृत्यु आदि का भय नहीं रहता।


सूर्य साधना से लाभ उठाने के लिए सूर्य में पूर्ण श्रद्धा और साधना में विश्वास की आवश्यकता है। नेत्र के रोगी, निर्बल दृष्टि में सुधार तथा मस्तिष्क शोधन, पेट के रोगों आदि से छुटकारा, कान, नाक, गले आदि की समस्याओं तथा त्वचा रोगों में सुधार, माइग्रेन, डिप्रैशन, तनाव, अनिद्रा का निवारण, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह के रोगों में लाभ प्राप्त होता है। धर्मशास्त्रों में रोग निवृत्ति के लिए सूर्य की पूजा, सूर्य उपवास और सूर्य नमस्कार के प्रयोग दिए गए हैं। सूर्य नमस्कार के लिए रवि का ध्यान करें और उनके नामों को लेते हुए नमस्कार करें-
ऊँमित्राय नम:।
ऊँसूर्याय नम:।
ऊँ खगाय नम:।
ऊँहिरण्य गर्भाय नम:।
ऊँ आदित्याय नम:।
ऊँअर्काय नम:।
ऊँ रवये नम:।
ऊँ मानवे नम:।
ऊँ पूष्णे नम:।
ऊँ मरीचये नम:।
ऊँ सावित्रे नम:।
ऊँभास्कराय नम:।


कर्म के साक्षी अरुण हैं अत: उन्हें नमस्कार करना चाहिए। अरुण विनता के पुत्र हैं, कर्म के साक्षी हैं, सात घोड़ों को सात लगामों से पकड़े हैं, इससे वह प्रसन्न होते हैं।


बारह सूर्य 
अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषण, भग, मित्र, वरुण, वैवस्वत्, विष्णु।


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