बिना दवा के होगा तनाव ग्रस्तों का इलाज

punjabkesari.in Wednesday, Aug 23, 2017 - 12:50 PM (IST)

चंडीगढ़ (पाल): डिप्रैशन (तनाव) में इलाज के दौरान मरीजों को कई दवाइयां दी जाती हैं लेकिन उन मरीजों में से भी कइयों से दवाईयां असर नहीं करतीं। ऐसे मरीजों के इलाज में पी.जी.आई. के साइकैट्रिक डिपार्टमैंट में नई तरह का ट्रीटमैंट काफी कारगर साबित हो रहा है। ओ.पी.डी. में उपलब्ध इस ट्रीटमैंट का नाम रेपीटेटिव ट्रांसक्रेनियल मैगनेटिक स्टीमूलेशन (आर.टी.एम.एस.) है। डिप्रैशन के मरीजों के लिए ऐसा इलाज मुहैया करवा रहा पी.जी.आई. उत्तर भारत का पहला अस्पताल है जहां यह सुविधा मौजूद है। आर.टी.एम.एस. ब्रेन स्टीमूलेशन टैक्नीक है जिसमें खोपड़ी पर इंस्युलेटिड कॉयल रखकर मैगनेटिक फील्ड जैनरेट (पैदा) की जाती है। यह मैगनेटिक फील्ड ठीक वैसी होगी जो मैगनेटिक रेसोनेंस इमेजिंग यानी एम.आर.आई. में प्रयोग होती हैं। मैगनेटिक पल्स दिमाग में हल्का सा करंट पैदा करती है जो दिमाग के सैलों के सॢकट को सक्रिय करती है। इस ट्रीटमैंट में कोई दवा, इंजैक्शन लगाने की जरूरत नहीं लेकिन कुछ सावधानियां बरतना जरूरी है। 


न्यूरोलॉजी की बीमारियों में भी कारगर
पी.जी.आई., साइकैट्रिक विभाग के डाक्टर मोहन सिंह की मानें तो यह तकनीक काफी सुरक्षित प्रक्रिया है। डिप्रैशन व ऑब्सेसिव कंपलसिव डिस्आर्डर के मरीज जो अन्य तरीकों से ठीक नहीं होते उनमें यह कारगर विधि है। यूनाइटेड स्टेट फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन विभाग के लंबे रिसर्च के बाद डिप्रैशन के उन मरीजों में विधि को कारगर पाया गया है जिनमें दवा काम नहीं करती। डाक्टर्स की मानें तो यह विधि माइग्रेन में भी कारगर पाई गई है। साथ ही साइकैट्रिक व न्यूरोलॉजी के अन्य कई डिस्आर्डर में भी यह विधि काम करेगी। आर.टी.एम.एस. विधि मरीज में हफ्ते में पांच से छह बार की जाएगी। वहीं एक सैशन कुछ मिनट से लेकर आधे घंटे तक का हो सकता है। ट्रीटमैंट का पूरा वक्त दो से चार हफ्ते तक ही रहेगा। मरीज की कंडीशन पर निर्भर होगा कि उसे ट्रीटमैंट के कितने सेशन देने हैं लेकिन बुजुर्ग व जिन मरीजों के गर्दन व ब्रेन में स्टंट हैं। वहीं जिन मरीजों को काॢडयक पेसमेकर या कार्डियक स्टंट डले हैं या कानों में मैटेलिक इम्प्लांट लगे हैं उनकों यह ट्रीटमैंट नहीं देना चाहिए। 


 


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