पंचकूला में उपद्रव के जिम्मेदारों तक पहुंचाएंगी फोन कॉल्स की डिटेल्स

punjabkesari.in Monday, Aug 28, 2017 - 08:28 AM (IST)

पंचकूला(नीरज) : साध्वी यौन शोषण केस में डेरा सच्चा सौदा के मुखी गुरमीत राम रहीम को सी.बी.आई. कोर्ट से दोषी करार दिए जाने के बाद पंचकूला में हुए उपद्रव के जिम्मेदार लोगों तक पहुंचने के लिए पुलिस अब मोबाइल फोन्स की कॉल डिटेल्स खंगालने की तैयारी में है। 

 

पुलिस को आशंका है कि उपद्रव के दौरान आगजनी में इस्तेमाल किया गया सामान और फायरिंग के लिए प्रयोग किए गए हथियार उपद्रवियों को लोकल लेवल पर उपलब्ध करवाए गए। स्थानीय स्तर पर नियुक्त डेरा सच्चा सौदा के प्रतिनिधियों के बारे में भी पता किया जा रहा है। हिंसा में पैसे के इस्तेमाल की आशंका को भी पुलिस सूत्र खारिज नहीं कर रहे हैं। प्रशासन ने 24 अगस्त की शाम से पंचकूला में मोबाइल की इंटरनैट और एस.एम.एस. सेवाएं बंद कर दी थीं लेकिन वायस कॉल की सुविधा जारी रखी थी। 

 

पंचकूला में जुटे तमाम डेरा प्रेमियों के पास मोबाइल थे और डेरा प्रबंधकों ने उनके फोन चार्ज रखने के लिए बड़े-बड़े चार्जरों का भी इंतजाम किया था, ताकि किसी भी डेरा प्रेमी का संपर्क अपने घरों से न टूटे। इन बड़े-बड़े चार्जरों में एक बार में 20 से 25 फोन चार्ज हो सकते थे। लिहाजा, हर डेरा प्रेमी का फोन 25 अगस्त की शाम तक चालू था। पुलिस को अब फोन कॉल्स की डिटेल्स से उपद्रव के जिम्मेदार लोगों तक पहुंचने की उम्मीद है इसलिए उपद्रव शुरू होने वाले स्थानों और आसपास का डंप डाटा उठाने की तैयारी की जा रही है। 

 

पुलिस सूत्रों का कहना है कि इसमें पता लगाया जाएगा कि जिन स्थानों से उपद्रव की शुरुआत हुई, वहां 24 अगस्त की रात से 25 अगस्त की शाम तक कितने मोबाइल फोनों पर इनकमिंग और आऊट गोइंग कॉल्स थीं। कितने फोनों पर ज्यादा और बार-बार कॉल्स हुईं। इनमें लोकल और एस.टी.डी. कॉल्स कितनी थीं। घटनास्थलों पर लोकल नंबरों से और लोकल नंबरों पर बाहर के फोनों से कितनी बार और कितनी देर बातें हुई हैं। इनमें संदिग्ध कॉल्स मिलने पर संबंधित नंबर के फोन धारकों से पूछताछ की जा सकती है।

 

वो पाऊडर क्या था?
उपद्रव के दौरान उपद्रवियों की ओर से पथराव और फायरिंग के अलावा बड़े स्तर पर आगजनी की गई थी। स्थानीय लोगों ने भी उपद्रवियों को कट्टों से फायरिंग करते हुए देखा था। इन्हीं लोगों ने यह भी देखा कि उपद्रवी आगजनी में प्लास्टिक की बोतलों में भरकर रखे पैट्रोल-डीजल के साथ एक पाऊडर का भी इस्तेमाल कर रहे थे। यह पाऊडर ऐसा था कि इसे आग में फैंकते ही आग विकराल रूप धारण कर लेती थी। 

 

सरकारी बिल्डिंगों में आग के दौरान इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया गया। अब सवाल उठता है कि यह पाऊडर क्या था? इसका जवाब तो तब मिलेगा जब  फॉरैंसिक टीमें आगजनी वाले स्थानों से सैंपल लेंगी और इसकी जांच करेंगी। फिलहाल, चश्मदीदों का मानना है कि उपद्रवी जिस तरह आगजनी और फायरिंग कर रहे थे, वह सभी पूरी तरह ट्रैंड थे और पहले से तय योजना के हिसाब से उपद्रव को अंजाम दे रहे थे। 

 

पंचकूला में आए थे रसद सामग्री के ट्रक :
पुलिस का मानना है कि उपद्रवियों ने पथराव के लिए ईंट-पत्थरों तो पंचकूला में प्रवेश के बाद सी.बी.आई. कोर्ट के आसपास के सैक्टरों में पहुंचकर अपने झोलों में भरे लेकिन फायरिंग में इस्तेमाल किए गए हथियार और आगजनी में प्रयोग किए गए ज्वलनशील पदार्थ उपद्रवियों के हाथ में कैसे पहुंचे, यह जांच का बड़ा विषय है। 

 

हो सकता है कि बॉर्डर नाकों पर केवल झोलों की चैकिंग होने और शरीर पर पहने कपड़ों व अंदर की तलाशी न होने से यह वस्तुएं पंचकूला में लेकर घुसने में वह कामयाब रहे हों लेकिन आशंका यह भी है कि यह चीजें लोकल लेवल पर भी उपलब्ध करवाई गई हों। क्योंकि डेरा प्रेमियों के खाने-पीने का इंतजाम करने के नाम पर रसद सामग्री के कई ट्रक भी काफी पहले से पंचकूला में आ रहे थे। इनमें घी-तेल, आटा-सब्जी, मसाले आदि की बोरियां शामिल थीं लेकिन इनकी तब ठीक से चैकिंग नहीं हुई। संभव है कि ज्वलनशील पदार्थ और हथियार इस सामग्री की आड़ में पहुंचाए गए हों। बाद में उपद्रवियों के हाथ में लोकल लेवल पर इन्हें पहुंचाया गया। 

 

24 अगस्त की रात गतिविधियां थीं संदिग्ध :
25 अगस्त की शाम को सबसे ज्यादा उपद्रव हैफेड चौक और उसके आसपास के सैक्टरों में हुआ। इससे पहले 24 अगस्त की रात को इस चौक पर कुछ गतिविधियां संदिग्ध नजर आ रही थीं। स्थानीय स्तर पर कई गाडि़य़ों में लोग डेरा प्रेमियों तक खाने-पीने की सामग्री और सूचनाएं लगातार पहुंचा रहे थे। पंचकूला के भीतर किसी भी नाके या बैरीकेडिंग पर किसी भी गाड़ी और व्यक्ति की चैकिंग नहीं की जा रही थी। इन गाडिय़ों में लोग सवार थे। यह गाडिय़ां केवल सड़क किनारे बैठे डेरा प्रेमियों की भीड़ के पास जाकर रुकती थीं। 

 

एक व्यक्ति भीड़ से निकलकर आता था और गाड़ी में बैठे लोग कुछ निर्देश देकर चले जाते थे। इसके बाद निर्देश लेने वाला व्यक्ति भी अंधेरे में भीड़ के बीच गायब हो जाता था। यहां बैठी भीड़ की देखभाल में तैनात लोग न खुद मीडिया कर्मियों से कोई बात कर रहे थे और न किसी को मीडिया कर्मियों समेत किसी भी दूसरे व्यक्ति (डेरा प्रेमी के अलावा) से बात करने दे रहे थे। दूसरे प्रदेशों के रजिस्ट्रेशन नंबरों की एंबुलैंसें भी 24 अगस्त की रात को डेरा प्रेमियों की भीड़ के पास आकर खड़ी हो रही थीं। इनमें लोग सवार थे और एंबुलैंस के कारण किसी भी नाके पर इनकी चैकिंग का तो सवाल ही नहीं था। हैफेड चौक पर बैठे लोग 24 अगस्त को पूरी रात सोए भी नहीं थे।


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