PGI ने इंफैक्शन दूर करने के लिए तैयार किया वैक्सीन का फार्मूला

punjabkesari.in Friday, Aug 25, 2017 - 01:28 PM (IST)

चंडीगढ़(अर्चना) : बच्चों की आंतों को इंफैक्शन से दूर रखने का पी.जी.आई. ने तोड़ तलाश लिया है। आंतों के इंफैक्शन की वजह से बच्चों को खूनी डायरिया अपना ग्रास बनाता है। पी.जी.आई. ने इंफैक्शन को दूर करने के लिए वैक्सीन का फार्मूला तैयार किया, जिसका इंटरनैशनल पेटैंट भी मिल गया है। 

 

पी.जी.आई. के माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने इमटैक (दि इंस्टीच्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्रोलॉजी) के सहयोग के साथ किए गए लंबे रिसर्च के बाद यह फार्मूला तैयार किया है। यह वैक्सीन आने वाले समय में बच्चों के इम्युनाइजेशन प्रोग्राम का हिस्सा बनेगी और बच्चों को डाइसेंटरी का मर्ज से दूर रखेगी। वैक्सीन की खासियत यह होगी कि इसे बच्चे को नेसल स्प्रे की मदद से भी दिया जा सकेगा। 

 

हालांकि ट्रायल के दौरान वैक्सीन के लिए तीन किस्म के वैक्सीन रूट पर काम किया गया है, जिसमें नेसल स्प्रे के अलावा बच्चों की स्किन या पेट पर इंजैक्शन लगाकर भी दिया जा सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं वैक्सीन का फार्मूला तैयार करने के लिए 75 माइस मॉडल के अलावा ह्यूमन ब्लड सैंपल पर भी रिसर्च वर्क किया जा चुका है। पी.जी.आई. की मानें तो वैक्सीन फार्मूला को रिफाइन बनाने के लिए 300 माइस मॉडल को भी अनुसंधान का हिस्सा बनाया जाएगा।

 

ऐसे की रिसर्च :
रिसर्च के दौरान बाओइंर्फोमेटिक टूल अप्रोच की मदद से शिगैला बैक्टीरिया द्वारा सिक्रेटिड प्रोटीन की पहचान की गई। 52 किस्म के प्रोटीन की किस्मों को ढूंढा गया और बैक्टीरिया की उन स्टेन पर काम किया जिनकी वजह से बच्चों में डिसेंट्री डिसीज होता है। प्रोटीन की विभिन्न किस्मों का आंकलन किया गया कि कौन से प्रोटीन शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाएंगे। उन पेशैंट्स के ब्लड सैंपल लिए जिन्हें ब्लडी डायरिया था। 

 

डिसेंट्री से लडऩे में सक्षम प्रोटीन को लैब में खास किस्म के उत्पाद के साथ मिलाकर वैक्सीन का रूप दिया गया। फिर वैक्सीन को माइस में इंजेक्ट किया गया। कुछ दिनों के बाद माइस के ब्लड में एंटीबॉडीज की मौजूदी मिली। 75 माइस मॉडल पर अलग-अलग ग्रुप में रिसर्च ट्रायल किए गए। डायरिया पेशैंट्स के ब्लड सैंपल में वैक्सीन का असर देखा गया और उन पेशैंट्स के ब्लड में भी वैक्सीन का असर आंका गया, जिन्हें इंफैक्शन नहीं था। वैक्सीन तैयार करने वाली टीम में मैडीकल माइक्रोबायोलॉजी विभाग की एक्सपर्ट डॉ. नीलम तनेजा, डॉ. सपना पाहिल, इमटैक से डॉ .जी.पी.एस.राघव और डॉ .एच.रहमान अंसारी ने अनुसंधान किया है।

 

यह है ब्लडी डायरिया की वजह :
शिगैला ऐसा बैक्टीरिया है। जिसकी 52 किस्में आंतों का इंफैकशन (डिसैंट्री)देने के लिए जिम्मेदार होती हैं। वल्र्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने डिसैंट्री को पहले ऐसे दस रोगों की श्रेणी में रखा है जो जानलेवा होते हैं। शिलैगा बैक्टीरिया हाथों व मुंह के रास्ते शरीर में घुसकर आंतों के सैल्स के अंदर घुस जाता है और सैल्स को खत्म कर देता है जिसकी वजह से पेशैंट्स की आंत में जख्म हो जाते हैं, ब्लड और पस भी डायरिया पेशैंट में निकलती है। पेशैंट्स को ब्लडी डायरिया, उल्टी, तेज बुखार, जोड़ों में दर्द की शिकायत होती है। बच्चों में यह बहुत ही घातक रूप में दिखती है। अगर किसी पेशैंट को एच.आई.वी. इंफैक्शन हो तो उसमें डिसीज कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है।

 

यह कहना है माइक्रोबायोलॉजिस्ट का :
पी.जी.आई. की मैडीकल माइक्रोबायोलॉजी एक्सपर्ट डॉ.नीलम तनेजा का कहना है कि पी.जी.आई. में आने वाले ब्लडी डायरिया के पेशैंट्स में से 5 प्रतिशत पेशैंट्स में शिगैला बैक्टीरिया की वजह से इंफैक्शन मिलता है। इसके अलावा ई-कोलाई और सालमोनेला की वजह से भी इंफैक्शन होता है। सबसे ज्यादा घातक और जानलेवा इंफैक्शन शिगैला की वजह से होता है। 

 

डॉ.तनेजा की मानें तो इसकी वजह से बच्चों में किडनी खराब होने के केसेज भी सामने आए हैं। यह भी देखा गया है कि इस इंफै क्शन के इलाज के लिए जितनी भी एंटीबायोटिक दी जाती हैं उनका असर खत्म होता जा रहा है। कुछ ऐसी एंटीबायोटिक हैं जो पहले 100 प्रतिशत असर करती थी, परंतु अब उनका असर 10 प्रतिशत भी नहीं रहा है, क्योंकि शिगैला बैक्टीरिया हर दफा नई स्टेन से इंफेकशन देती है। 

 

रिसर्च में आगे 300 माइस को शिगैला इंफैक्शन दिया जाएगा, वैक्सीन दी जाएगी और उसके बाद माइस की ऑटोपसी कर ओर्गन पर इंफैक्शन और दवा के असर को चैक किया जाएगा। पी.जी.आई. के अलावा शिगैला बैक्टीरिया पर अमेरिका के वाल्टर रीड रिसर्च इंस्टीच्यूट, पेरिस के पेसचर इंस्टीच्यूट और अमेरिका के मैरीलैंड इंस्टीच्यूट के वैज्ञानिक भी काम कर रहे हैं।

 

शिगैला बैक्टीरिया के प्रोटीन से ही वैक्सीन बनाई :
मैडीकल माइक्रोबायोलॉजी की अनुसंधानकर्ता डॉ.सपना का कहना है कि शिगैला बैक्टीरिया के प्रोटीन से ही वैक्सीन तैयार की गई है। बैक्टीरिया में बहुत किस्म की प्रोटीन थी, परंतु ऐसी प्रोटीन जिनमें रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने की क्षमता मौजूद थी और एंटीबॉडीज तैयार करने की ताकत थी उनकी पहचान बहुत जरूरी थी। सॉफ्टवेयर के दम पर प्रोटीन के कम्बीनेशन तैयार किए गए। शोध में दो नई प्रोटीन खोजी गई और एक एक पुराने प्रोटीन के साथ एक दवा का मिक्सचर बनाया गया। ईएल 2 और ईएल5 प्रोटीन बिल्कुल नए थे जबकि एक प्रोटीन पुरानी खोज थी।


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