नॉर्थ इंडिया में बोन डैनसिटी को जांचने के लिए PGI होगा इकलौता संस्थान

punjabkesari.in Monday, Nov 13, 2017 - 10:07 AM (IST)

चंडीगढ़(रवि) : अगर सब कुछ योजना के मुताबिक रहा तो अगले वर्ष तक पी.जी.आई. नॉर्थ का पहला ऐसा संस्थान होगा जहां बोन डेनसिटी (बी.एम.डी) को जानने के लिए उसके पास खुद का इंडियन डाटा होगा। अभी तक डाक्टर्स भारतीय लोगों की बोन डेनसिटी का स्कैन करने का बाद उसकी तुलना विदेशी डाटा के साथ करते आ रहे हैं। डाक्टर्स की माने तो पूरे देश में इसी तरह यहां के लोगों की हड्डियों की क्षमता को नापा जा रहा है जोकि सरासर गलत है। 

 

पी.जी.आई. एंडोक्राइनोलॉजी विभाग द्वारा चंडीगढ़ अरबन बोन एंड एपीडिमीलोजिकल (क्यूब्स) नामक स्टडी की जा रही है। रिसर्चर डा. अशिंता की माने तो बढ़ती उम्र के साथ बोन्स कमजोर होने लगती है जो कि हड्ड्यिों की सबसे कॉमन व खतरनाक बीमारी ऑस्टियोपोरोसिस का कारण बनती है। 

 

कैंसर से भारत के साथ विशव भर में सबसे ज्यादा मौत दर्ज की जाती है लेकिन ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसी बीमारी है जिससे मरने वाले की संख्या कैंसर से कही ज्यादा है। ऑस्टियोपोरोसिस में हड्ड्यिां इतनी कमजोर हो जाती है कि फ्रैक्चर का रिस्क बढ़ जाता है। जिसके कारण इंफैक्शन, बैड सोर, अल्सर मैंटर ट्रॉमा का कारण बनती है जो डॉयरैक्ट व इन-डॉयरैक्ट मौत की वजह बनती है। 

 

पी.जी.आई. कर रहा एक हजार लोगों पर सर्वे :
पूरे विश्व में  ऑस्टियोपोरोसिस की पता लगाने के लिए डैक्सा नाम का स्कैन किया जाता है यह स्कैन बोन डेनसिटी व बी.एन.डी. के बारें में बताता है। इस स्कैन के बाद यह मशीन बोन्स का एक स्कोर बताती है, जिसे टी-स्कोर व जेड-स्कोर कहते हैं। डैक्सा स्कैन के बाद जो स्कोर आता है उसे निकालने के लिए मशीन में पहले से ही मौजूद नॉर्मल लोगों के डाटा से कंपेयर किया जाता है। 

 

अगर मरीज का स्कोर माइनस-1 से अच्छा है तो वह नॉर्मल माना जाता है। लेकिन अगर यह स्कोर माइनस-1 से कम है तो मरीज को ऑस्टियोपोरोसिस की पहले स्टेज यानि ऑस्टोपीनिया हो जाता है। वहीं अगर यह स्कोर माइनस-2.5 से भी ज्यादा खराब है तो उसे ऑस्टियोपोरोसिस कंफर्म किया जाता है। 

 

डा. अशिंता की माने तो पिछले 20 वर्षो से भारत में यही टैक्नीक अपनाई जा रही है। लेकिन इस टैक्नीक की सबसे बड़ी खामी यह है कि यह मशीन में जो नॉर्मल लोगों का डाटा पहले से मौजूद है वह इंडियन्स का नहीं है। विदेशी लोगों का बॉडी स्ट्रक्चर, उनकी डाइट, उनके जीन्स भारतीय लोगों से बिल्कुल अलग है। ऐसे में भारतीयों लोगों की बोन डेनसिटी को उनके साथ कम्पेयर करना सही नहीं है।  

 

डाक्टर्स की माने तो एक स्वास्थ्य भारतीय की भी तुलना अगर विदेशी व्यक्ति से करे तो उसकी बोन डेनसिटी में अंतर होगा ही होगा। बोन डेनसिटी में व्यक्ति की हाइट व फिजिक का बहुत बड़ा फर्क पड़ता है। विदेशी लोगों का स्ट्रक्चर नॉमली काफी बड़ा होता है। जबकि इंडियंस का स्ट्रक्चर इतना बड़ा नहीं है। ऐसे में स्कैन में बोन डेनसिटी का स्कोर खराब होने के चांस ज्यादा है। 

 

फिलहाल 4 सैक्टर्स को चुना सर्वे के लिए :
पी.जी.आई. एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के प्रो. संजय बडाडा के नेतृत्व में यग सर्वे चल रहा है। फिलहाल सैक्टर-15, 38 व 52 और इंदिरा कॉलोनी में घर-घर जाकर लोगों का सैंपल लिया जा रहा है। 

 

डा. अंशिता ने बताया कि इन घरों में जाकर लोगों की मैडीकल हिस्ट्री लेकर, उन लोगों को इसमें शामिल किया जा रहा है जिन्हें किसी तरह की कोई बीमारी नहीं है। उनकी डाइट, कैल्शियम, फिलिकली एक्टिनेस व ब्लड सैंपल की जांच की जाती है जिसके बाद इनकों पी.जी.आई. डैक्सा स्कैन के लिए बुलाया जाता है। 

 

पिछले वर्ष इस स्टडी को शुरू किया गया था अभी तक 400 लोगों का डैक्सा स्कैन किया जा चुका है जबकि 700 लोगों की ब्लड सैंपलिंग की जा चुकी है। पी.जी.आई. अपना खुद का डाटा बैस्ड बना रहा है जिसे हम खुद के लोगों की बोन डेनसिटी तुलना भारतीयों के साथ ही कर पाएंगे। 


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