PGI सड़कों पर फैंका जा रहा संक्रमित खून, इंफैक्शन का खतरा

punjabkesari.in Saturday, Sep 23, 2017 - 07:36 AM (IST)

चंडीगढ़ (अर्चना): पी.जी.आई. में टैस्ट के लिए लिया गया मरीजों के खून का सैंपल सड़का पर फैंका जा रहा है। रिसर्च ब्लॉक बी के सामने पिछले कई महीनों से संक्रमित खून सड़क को दागदार बना रहा है। रिसर्च ब्लॉक बी में एंडोक्रायनोलॉजी, एक्सपैरिमैंटल मैडीसिन, हिपैटोलॉजी, एनॉटमी, फॉरैंसिक डिपार्टमैंट आदि की लैब्स हैं। सूत्र कहते हैं कि लैब्स मरीजों के ब्लड सैंपल जांच करने के बाद हॉस्पिटल ड्रेन में फैंक रही हैं। ड्रेन के ब्लॉक होने की वजह से सारा खून सड़क पर फैल जाता है जबकि लैब इंचार्ज खुद हैरान हैं कि वह लैब्स से इतना ब्लड ड्रेन में नहीं फैंक रहे हैं जितना पी.जी.आई. की सड़क पर दिखाई दे रहा है। फैंके गए ब्लड का रंग कहीं लाल तो कहीं काला हो चुका है। 

 

खून के साथ खतरनाक कैमिकल भी सड़क पर खुलेआम पहुंच रहे हैं जो आसपास के माहौल में रहने वाले लोगों को इंफैक्शन दे सकता है। हैड ऑफ डिपार्टमैंट्स ने खून के स्रोत को लेकर हैरानी जताते हुए कहा है कि हॉस्पिटल इंजीनियरिंग विंग इसके लिए जिम्मेदार है क्योंकि लैब्स को सैंपल टैस्ट के बाद बचे हुए ब्लड को ड्रेन में फैंकने के लिए इंजीनियरिंग विंग ने ही कहा है परंतु उस खून की मात्रा इतनी नहीं हो सकती कि वो सड़क पर बहे। यह खून कहां से आ रहा है इसकी जांच होनी चाहिए। हैड्स का यह भी कहना है कि वह सैंपल टैस्ट के  बाद उसको कीटाणुरहित करते हैं। कीटाणु रहित सैंपल को वॉयल समेत पी.जी.आई. के इनसीनरेटर में जलाने के लिए भेज दिया जाता है। जो ब्लड गिर जाता है, उसे ड्रेन में फैंकते हैं। 

 

उधर, सूत्र कहते हैं कि पी.जी.आई. की हर लैब में एक दिन में 500 से लेकर 1000 पेशैंट्स के ब्लड सैंपल पहुंचते हैं। इनमें शुगर, हार्मोनल प्रॉब्लम, एच.आई.वी., ट्यूबरक्लोसिस आदि कई बीमारियों की जांच से संबंधित सैंपल भी होते हैं। अगर 100 मिलीलीटर खून में सिर्फ 2 मिलीलीटर ब्लड भी संक्रमित हो तो भी पूरा 100 मिलीलीटर ब्लड भी संक्रमित हो जाता है। बायो मैडीकल वैस्ट मैनेजमैंट के नियम कहते हैं कि लैब्स से निकलने वाला पानी ट्रीट होने के बाद ही ड्रेन में जाना चाहिए जबकि चंडीगढ़ के किसी भी हॉस्पिटल में लैब्स का पानी (जिसमें कैमिकल और खून मौजूद होते हैं) ट्रीटमैंट के बगैर ड्रेन में फैंका जा रहा है। चंडीगढ़ पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड शहर के हॉस्पिटल्स को एफलुऐंट ट्रीटमैंट प्लांट न लगाए जाने पर कई नोटिस भी थमा चुका है।'


 

जानवरों पर किए गए रिसर्च से तो नहीं निकला खून?  
पी.जी.आई. रिसर्च ब्लॉक के बाहर एक फूड प्वाइंट बना हुआ है जहां डाक्टर्स, नर्सेज से लेकर इम्प्लाइज भी खाने-पीने के लिए आते हैं। फूड प्वाइंट के पास बिखरे खून और गंदी बदबू की वजह से लोगों में खौफ उत्पन्न हो गया है। उनका कहना है कि वेस्ट के सड़क पर आने का मतलब यह है कि पी.जी.आई. बायोमैडीकल वेस्ट नियमों को मान नहीं रहा है। यह नियम इसी वजह से बनाए गए हैं ताकि आसपास के माहौल पर बायोमैडीकल वेस्ट का दुष्प्रभाव न आ सके। सिर्फ ब्लड से दिक्कत नहीं है ब्लड के साथ आने वाले कैमिकल लोगों को कई तरह की एलर्जी और इंफेक्शन दे सकते हैं। उनका यह भी कहना है कि हो सकता है लैब में इंफैक्टिड ब्लड को ठीक से डिस्पोज ऑफ भी नहीं किया जा रहा। 

 

कुछ कर्मचारियों का यह भी कहना है कि हो सकता है डैड बॉडीज के आर्गन को स्टडी के लिए निकाला गया हो या फिर जानवरों पर किए गए एक्सपैरीमैंट के दौरान खून बहाया गया हो। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह बायोमैडीकल वेस्ट मैनेजमैंट नियमों का उल्लंघन है। ब्लड में मौजूद कीटाणु अगर किसी ऐसे व्यक्ति के शरीर के संपर्क में आए जिसको जख्म है तो उसे इंफैक्शन हो सकता है। उधर, पी.जी.आई. इम्प्लाइज का कहना है कि वह पिछले कई महीनों से हैड्स को इस बाबत शिकायत दे रहे हैं कि सड़कों पर खून बह रहा है परंतु संबंधित अधिकारी इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं है। 

 

एंडोक्रायनोलॉजी विभाग की लैबोरेटरी में जो भी ब्लड सैंपल लिए जाते हैं, उन्हें डायग्नोस्टिक टैस्ट के बाद कीटाणुरहित किया जाता है और उसके बाद उस ब्लड को वॉयल समेत इनसीनरेटर में जलने के लिए भेज दिया जाता है। परंतु कुछ ब्लड गिर जाता है, उस ब्लड को हाइपोक्लोराइड सॉल्यूशन से डिस-इंफैक्ट करने के बाद ड्रेन में डाल दिया जाता है। इसके बाबत पी.जी.आई.के ही हॉस्पिटल इंजीनियरिंग डिपार्टमैंट ने निर्देश जारी किए थे। सिर्फ एंडोक्रायनोलॉजी की लैब ही नहीं बल्कि फोरेंसिक, एनॉटमी, हिपैटोलॉजी, एक्सपैरीमैंटल मैडीसिन आदि की लैब भी ड्रेन में ब्लड फैंक रही हैं। यह ब्लड ड्रेन से बाहर क्यों आ रहा है या यह ब्लड मिट्टी में अगर पहुंच रहा है तो उसके लिए एंडोक्रायनोलॉजी या अन्य लैब्स नहीं बल्कि हॉस्पिटल इंजीनियरिंग विंग जिम्मेदार है। 
-प्रो. अनिल भंसाली, एच.ओ.डी., एंडोक्रायनोलॉजी विभाग


 


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