दिल्ली के मुकाबले चंडीगढ़ में घट रहे कैंसर के मरीज

punjabkesari.in Monday, Feb 05, 2018 - 01:04 PM (IST)

चंडीगढ़(साजन) : पी.जी.आई. और टाटा मैमोरियल की कैंसर रजिस्ट्री रिपोर्ट में चंडीगढ़ में प्रति लाख पर 96.1 पुरूष और 104.6 महिलाओं को कैैंसर है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय आंकड़े से अधिक है, जबकि महिलाओं में ब्रेस्ट और सर्विक्स कैंसर सबसे ज्यादा है। प्रति लाख के पीछे 35.1 महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर है। हालांकि दिल्ली व चेन्नई के मुकाबले यह कम है। रिपोर्ट को आधार मानें तो शहर में कैंसर के आंकड़ों में लगातार गिरावट आ रही है।

 

कुछ समय पहले हाईकोर्ट में कैंसर को लेकर एक रिपोर्ट रखी गई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि प्रति लाख के पीछे 106 पुरुषों जबकि 148 महिलाओं को कैंसर है। बीकानेर और हैदराबाद के रीजनल कैंसर सैंटरों से मिले आंकड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई थी। रिसर्च के दौरान सरकारी पेयजल सप्लाई का आंकलन व परीक्षण किया गया। इसमें ग्राऊंड वाटर, नहरी पानी और आर.ओ. के पानी को परखा गया। 

 

बठिंडा शहर के ग्राऊंड वाटर, विशेषतौर पर थर्मल पावर प्लांट, नालों का इंडस्ट्रियल वेस्ट मिला पानी भी परखा गया जो सतलुज नदी में जाकर मिल रहा हैं। इसमें यह पाया गया कि मालवा रीजन में ग्राऊंड वाटर में मौजूद यूरेनियम, इंडस्ट्रीयल वेस्ट, कृषि में प्रयोग होने वाले कीटनाशकों या यूरिया, तोशाम हिल्स की चट्टानों इत्यादि की वजह से नहीं है। 

 

रिसर्च में पाया गया कि ग्राऊंड वाटर में यूरेनियम इलाके में हिमालय पर्वत बनने से पहले स्थित समुद्र की वजह से पैदा हुआ। खेतीबाड़ी ज्यादा होने और मिट्टी में कैल्शियम ज्यादा होने की वजह से बायकार्बोनेट पैदा हुआ जो मिट्टी से यूरेनियम को खींचने लगा। नहरी पानी के प्रयोग की वजह से ग्राऊंड वाटर बाहर निकलने की प्रक्रिया रूक गई और पानी में यूरेनियम की मात्रा बढऩे लगी। रिसर्च में शामिल रहे पंजाब यूनिवर्सिटी के फिजिक्स विभाग के प्रो. देवेंद्र मेहता के मुताबिक मालवा रीजन में यह स्थिति ज्यादा जल्दी उपज गई क्योंकि यहां जमीन के नीचे पानी जमा होता रहा।

 

फेफड़े व प्रोस्टेट कैंसर की ज्यादा मार :
सिटी ब्यूटीफुल की शहरी आबादी में फेफड़ों व प्रोस्टेट कैंसर की ज्यादा मार है। आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण आबादी में कैंसर का एडवांस स्टेज पर ही पता चलता है। यही वजह है कि पी.जी.आई. व स्वास्थ्य विभाग ने ग्रामीण इलाकों में जाकर कैंसर की जांच का अभियान शुरू किया है। 

 

नैशनल प्रोग्राम फार प्रीवैंशन एंड कंट्रोल आफ कैंसर, डायबिटीज, कार्डियोवास्कुलर डिजीज और स्ट्रोक को लेकर यू.टी. हैल्थ विभाग ने 6 फरवरी को सैक्टर-26 कालोनी, मौलीजागरां और बहलाना मेें कैंसर का स्क्रीनिंग कम हैल्थ अवेयरनैस कैंप लगाने की योजना बनाई है। 30 साल से ऊपर की सभी महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर और सर्विक्स कैंसर की जांच की जाएगी।

 

शादीशुदा को सबसे ज्यादा कैंसर :
बीकानेर और हैदराबाद में इलाज करा रहे मरीजों की जांच में यह सामने आया कि बहुत से मरीज धूम्रपान, तंबाकू खाने और शराब पीने के शौकीन थे। ज्यादातर धूम्रपान करने वाले, दूसरे नंबर पर शराब पीने वाले और फिर तंबाकू खाने वाले मरीज थे। दोनों सैंटरों से एक और हैरतंगेज करने वाली बात सामने आई। कैंसर कुंवारों के मुकाबले शादीशुदा में ज्यादा पाया गया। 

 

हैदराबाद सैंटर में बठिंडा, मानसा, फिरोजपुर, मुक्तसर, फरीदकोट, संगरूर, मोगा, पटियाला, जालंधर, लुधियाना, फतेहगढ़, कपूरथला, रायपुर और अमृतसर जिलों के साथ हरियाणा के सिरसा, हिसार, भिवानी, कैथल, फतेहाबाद, पानीपत, अंबाला, झच्चर इत्यादि के लोगों की तादाद ज्यादा थी जो इलाज कराने पहुंचे थे। इसी तरह बीकानेर सैंटर में भी पंजाब व हरियाणा के लोगों की तादाद काफी ज्यादा थी। 

 

यह स्टडी आचार्य तुलसी रीजनल कैंसर ट्रीटमैंट एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर एंड एम.एन.जे. इंस्टीच्यूट ऑफ ओंकोलॉजी एंड रीजनल कैंसर सैंटर हैदराबाद में की गई जहां पंजाब हरियाणा से बहुत कैंसर पीड़ित इलाज कराने जाते थे। हालांकि अब परिस्थितियां बदली हैं और पी.जी.आई. सहित अन्य अस्पताल खुलने से यहां भी इलाज होने लगा है।

 

कैंसर के मरीजों को भेजते हैं बीकानेर और हैदराबाद :
दोनों सैंटरों में पाया गया कि 31 से 45 साल और 46 से 60 साल के बीच के मरीजों में गले, लीवर, पेडू व मुंह का कैंसर पाया गया। महिलाओं में ब्रैस्ट व यूटेरस का कैंसर पाया गया। महिलाओं में भी गले लीवर व पेडू का कैंसर पाया गया। 

 

पंजाब से इन सैंटरों में 35.4 प्रतिशत जबकि हरियाणा से 15.5 प्रतिशत मरीज इलाज को पहुंचे थे। इसमें भी बठिंडा से 27.6 प्रतिशत, मानसा से 19.6 प्रतिशत, फिरोजपुर से 13.55 प्रतिशत और मुक्तसर से 11.5 प्रतिशत मरीज थे। सिरसा से 36.5 प्रतिशत, हिसार से 20.8 प्रतिशत और भिवानी से 15.7 प्रतिशत मरीज इलाज को पहुंचे थे। 

 

इस स्टडी में यह भी जानने की कोशिश की गई कि क्या कैंसर किसानी कर रहे लोगों में अन्य प्रोफेशन के लोगों से ज्यादा होता है। क्या किसानों में कोई अलग तरह का कैंसर पनप रहा है। 


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