ग्रह स्थितियां हों अनुकूल तो मिलेगी सांझेदारी में सफलता, ये राशि वाले होते हैं Best Partners

punjabkesari.in Saturday, Mar 10, 2018 - 01:03 PM (IST)

सांझेदारी में व्यापार करने के लिए सांझेदारों के मध्य आपसी वैचारिक तालमेल आवश्यक है। यह तालमेल कैसा रहेगा, इसका अध्ययन जन्म कुंडली में स्थित ग्रह-योगों द्वारा किया जा सकता है। जन्म कुंडली का सप्तम भाव व्यापार और सांझेदारी तथा पंचम भाव आपसी प्रेम से संबंधित है। चंद्रमा से राशि का निर्धारण होता है और वही मन का कारक होने से आपसी तालमेल बनाने में सहायक होता है। दोनों के लग्नेश व राशि स्वामियों में मित्रता का होना सांझेदारी की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सांझेदार व्यक्तियों की कुंडली में कुछ पारम्परिक ग्रह स्थितियां ऐसी होती हैं जिनसे पता चलता है कि सांझेदारी निभेगी या नहीं और वे सफलता प्राप्त करेंगे या नहीं।


अनुकूल ग्रह स्थितियां
दोनों की राशियां एक-दूसरे से सम सप्तक हों या एक से अधिक ग्रह सम सप्तक हों। चंद्रमा के एक-दूसरे की कुंडली में सम सप्तक होने पर वैचारिक तालमेल उत्तम रहता है। दोनों के शुभ ग्रह समान भाव में हों अर्थात एक ही कुंडली में शुभ ग्रह यदि लग्र, पंचम, नवम या केंद्र में हो तथा दूसरे के भी इन्हीं भावों में हों। दोनों के लग्नेश तथा राशि स्वामी एक ही ग्रह हों। जैसे एक की राशि मीन हो तथा दूसरे की जन्म लग्र मीन होने पर दोनों का राशि स्वामी गुरु होगा। एक का लग्नेश दूसरे के सप्तम भाव में हो तथा दूसरे का सप्तमेश पहले की कुंडली के लग्र में हो। जैसे एक का जन्म लग्र मिथुन है जिसका लग्नेश बुध दूसरे के सप्तम भाव में हो। दूसरे की माना मेष लग्र हो, तो उसका सप्तमेश शुक्र पहले वाले के लग्र स्थान मिथुन राशि में हों या एक का लग्नेश दूसरे के सप्तमेश को देखे तथा दूसरे का लग्नेश पहले के सप्तमेश को देखे। दोनों के सप्तमेश में पारस्परिक दृष्टि संबंध हो। एक का सप्तमेश जिस राशि में हो वही दूसरे की राशि हो अथवा दोनों का राशि स्वामी एक ही ग्रह हो जैसे-मेष-वृश्चिक (मंगल), वृष-तुला (शुक्र), मिथुन-कन्या (बुध) इन उत्तम तालमेल से व्यापार में आने वाले अनेकों परेशानियां स्वत: ही दूर हो जाती हैं। 


दोनों के लग्नेश, राशि स्वामी अथवा सप्तमेश समान भाव में अथवा एक-दूसरे के सम-सप्तक होने पर सांझेदारी के रिश्तों में प्रगाढ़ता तथा प्रेम भावना प्रदान करेंगे। 
दोनों की कुंडलियों के ग्रहों में समान दृष्टि संबंध हो जैसे एक के गुरु चंद्र में दृष्टि संबंध हो तो दूसरे की कुंडली में भी यही ग्रह दृष्टि संबंध बनाएं।


सांझेदारी कब नहीं करें
शनि, सूर्य, राहू 12वें भाव का स्वामी (द्वादशेश) तथा राहू अधिष्ठित राशि का स्वामी (जैसे राहू मीन राशि में हो तो मीन का स्वामी गुरु राहू अधिष्ठित राशि का स्वामी होगा) ये पांच ग्रह विच्छेदात्मक प्रवृति के होते हैं। इनमें से किन्हीं दो या अधिक ग्रहों का युति या दृष्टि संबंध जन्म कुंडली के जिस भाव स्वामी से होता है तो उसे नुक्सान पहुंचाते हैं। अत: सप्तम भाव अथवा उसके स्वामी को इन ग्रहों द्वारा प्रभावित करने पर सांझेदारी में कटुता आती है। सप्तम भाव में शनि सांझेदारी को नीरस बनाता है, मंगल से तनाव होता है, सूर्य आपस में मतभेद पैदा करता है। सप्तम भाव में बुध-शनि दोनों नपुंसक ग्रहों की युति व्यक्ति को भीरू तथा निरुत्साही बनाते हैं। यदि इन ग्रह परिस्थितियों के कोई अन्य परिहार (काट) या उपाय कोई अन्य परिहार (काट) या उपाय जन्मकुंडली में उपलब्ध नहीं हों तो सांझेदारी में व्यापार न करें।


राशिगत मित्रता भी जानें
राशिगत मित्रता का निर्धारण राशियों के स्वामी से किया जाता है। सांझेदारों के राशि स्वामियों में मित्रता होने पर ग्रहमैत्री के कारण आपसी ताल-मेल अच्छा होता है और व्यापार में सफलता मिलती है। राशियों में मित्रता इस प्रकार है-


मेष-वृश्चिक : इन दोनों राशियों का स्वामी मंगल होने से इसकी कर्क, सिंह, धनु तथा मीन से मित्रता है। मिथुन-कन्या से शत्रुता है।


वृष-तुला : राशि स्वामी शुक्र है। अत: इनकी मिथुन, कन्या, मकर तथा कुंभ राशि से मित्रता है। कर्क, सिंह से शत्रुता है


मिथुन-कन्या : इनका राशि स्वामी बुध है, जो वृष, सिंह तथा तुला से मित्रता रखते हैं जबकि कर्क से शत्रुता है।


कर्क राशि : स्वामी चंद्रमा है। इसकी सिंह राशि से मित्रता है। 


मिथुन व कन्या का स्वामी बुध, चंद्रमा से शत्रुता रखता है।


सिंह राशि: स्वामी सूर्य है। मेष, कर्क, वृश्चिक, धनु एवं मीन इसकी मित्र राशि हैं तथा वृष, तुला, मकर एवं कुंभ राशि से शत्रुता है।


धनु- मीन : राशि स्वामी गुरु है। इसकी मेष, कर्क, सिंह एवं वृश्चिक राशि से मित्रता तथा वृष मिथुन, कन्या एवं तुला राशि से शत्रुता है।


मकर- कुंभ : राशि स्वामी शनि है। वृष, मिथुन, कन्या तथा तुला से मित्रता है। वहीं कर्क, सिंह, मेष तथा वृश्चिक से शत्रुता है।


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