GST Effect: विमानन क्षेत्र को सहना पड़ेगा टैक्स का बोझ

punjabkesari.in Saturday, Oct 14, 2017 - 01:28 PM (IST)

नई दिल्ली: जी.एस.टी. के कारण विमानन क्षेत्र को हर वर्ष 5700 करोड़ रुपए का नुक्सान होगा। यह चिंता घरेलू एयरलाइंस ने वित्त मंत्रालय के समक्ष प्रकट की है। फैडरेशन आफ  इंडियन एयरलाइंस (एफ.आई.ए.) जो स्पाईस जैट, जैट एयरवेज और गोएयर आदि का प्रतिनिधित्व करता है, ने समूचे एयरलाइंस उद्योग की तरफ  से पिछले महीने वित्त मंत्रालय के उच्चाधिकारियों को प्रार्थना की थी कि जी.एस.टी. की वजह के साथ न्यू इन्डायरैक्ट व्यवस्था -रैवेन्यू और इकुअटी के दिशा-निर्देश और सिद्धांत भंग हुए हैं।

वित्त मंत्रालय को यह भी बताया गया है कि एयरलाइंस उद्योग को न सिर्फ  सालाना 5700 करोड़ रुपए का नुक्सान होगा, बल्कि इसके साथ उद्योग के प्रफुल्लित होने में एक बड़ी रुकावट आएगी। एयरलाइंस ने बताया कि जी.एस.टी. की चालू हालत पिछले साल नैशनल सिविल एविएशन पालिसी 2016 और रीजनल कनैकटीविटी स्कीम ‘उड़ान’ को जारी होने में हानि रहित और चिर स्थायी लक्ष्य के विरुद्ध है।

सिफारिशों की पेशकश
एयरलाइंस एग्जैक्टिव ने कहा है कि एयरलाइंस की चिर स्थिरता को बनाए रखने के लिए एयरलाइंस ने कुछ सिफारिशें की हैं और मांग की है कि सॢवस एक्सचेंज प्रोग्राम अधीन मुरम्मतशुदा एयर क्राफ्ट इंजन और कल-पुर्जे केआयात पर इटैगरेटिड गुड्स और सर्विस टैक्स (आई.जी.एस.टी.) न वसूला जाए, जबकि फिर आयातित एयर क्राफ्ट स्पेयर पाटर्स, पर जी.एस.टी. अधीन 18 प्रतिशत टैक्स वसूला जाता है, जिसकी आयात ड्यूटी और सर्विस टैक्स से छूट थी।

भारत में मुरम्मत पर जी.एस.टी. की अदायगी प्रशंसनीय है परन्तु विदेश में मुरम्मत पर यह वसूला नहीं जाना चाहिए क्योंकि भारत में इंजन मुरम्मत की कोई दुकान नहीं है, इसलिए जरूरी है कि पार्ट्स को विदेश भेजा जाए जिस पर हवाई उद्योग को 2000 करोड़ रुपए का बोझ सहना होगा।

कलपुर्जों का तबादला
एयरलाइंस ने वित्त मंत्रालय को बताया कि और चिंता की बात है कि जी.एस.टी. हवाई कलपुर्जों पर भी लगा है, जो कि रोजमर्रा की आधार पर प्रदेशों में केन्द्रीय स्थान के स्टोरों में रखे जाते हैं। एग्जैक्टिव ने कहा कि इस स्थिति में एयरलाइंस की चिर स्थापना को भारी खतरा लगेगा और इसके साथ एक साल में 3000 करोड़ रुपए के नुक्सान के साथ उद्योग प्रभावित होंगा। यही बस नहीं हवाई जहाजों के पुर्जों की खरीद पर लगाई आई.जी.एस.टी. ऊंची दर एक ओर मामला है, जिसके साथ एयरलाइंस पर हर साल 350 करोड़ रुपए का बोझ पड़ जाएगा।


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