दिवालियापन की और बढ़ रहा बैकिंग सैक्टर, साढ़े 5 साल में बैंकों के डूबे करोड़ों रुपए

punjabkesari.in Wednesday, Feb 21, 2018 - 10:03 AM (IST)

भोपाल : भारत का बैंकिंग सैक्टर कहीं दिवालियापन की ओर तो नहीं बढ़ रहा है क्योंकि बीते साढ़े 5 वर्षों में बैंकों की 3,67,765 करोड़ की रकम आपसी समझौते के तहत डूब (राइट ऑफ ) गई है, वहीं इससे कहीं ज्यादा रकम अब भी डूबत खाते में डालने की मजबूरी दिख रही है।

सूचना के अधिकार के तहत भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जो जानकारी उपलब्ध कराई गई है, वह चौंकाने वाली है। आर.बी.आई. के मुताबिक वर्ष 2012-13 से सितम्बर 2017 तक सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बैंकों ने आपसी समझौते सहित (इन्क्लूङ्क्षडग कम्प्रोमाइज) के जरिए कुल 3,67,765 करोड़ रुपए की रकम राइट ऑफ  की है। इसमें से 27 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक हैं। वहीं 22 निजी क्षेत्रों के बैंक हैं जिन्होंने यह रकम राइट ऑफ  की है।

बढ़ रही है रकम
सामाजिक कार्यकत्र्ता चंद्रशेखर गौड़ को आर.बी.आई. से मिले जवाब में बताया गया है कि बैंकों द्वारा राइट ऑफ की जाने वाली रकम लगातार बढ़ती जा रही है। सिलसिलेवार देखें तो पता चलता है कि वर्ष 2012-13 में राइट ऑफ की गई रकम 32,127 करोड़ थी, जो बढ़कर वर्ष 2016-17 में 1,03,202 करोड़ रुपए हो गई। आर.बी.आई. के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2013-14 में 40,870 करोड़, वर्ष 2014-15 में 56,144 करोड़, वर्ष 2015-16 में 69,210 करोड़ रुपए की राशि राइट ऑफ  की गई। वहीं वर्ष 2017-18 के सिर्फ  शुरूआती 6 माह अप्रैल से सितम्बर के बीच 66,162 करोड़ की राशि आपसी समझौते के आधार पर राइट ऑफ  की गई।

क्या कहते है आर.बी.आई. के आंकड़े
आर.बी.आई. द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र (पब्लिक सैक्टर) के बैंकों ने निजी क्षेत्र (प्राइवेट सैक्टर) के बैंकों के मुकाबले लगभग 5 गुना रकम राइट ऑफ  की है। निजी क्षेत्र के बैंकों ने जहां साढ़े 5 साल में 64,187 करोड़ रुपए की रकम राइट ऑफ  की, वहीं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने इसी अवधि में 3,03,578 करोड़ रुपए की राशि को राइट ऑफ  किया है।

बैंक कर्ज देते समय खातों को बांटते हैं 4 श्रेणियों में 
बैंकिंग क्षेत्रों के जानकारों की मानें तो राइट ऑफ  कराने का खेल अपनी तरह का है। बैंक जब कर्ज देते हैं तो खातों को 4 श्रेणियों में बांटते हैं। ये खाते कर्ज की किस्त जमा करने के आधार पर तय होते हैं। स्टैंडर्ड (तय समय पर किस्त देने वाला), सब-स्टैंडर्ड (कुछ विलंब से किस्त अदा करने वाले), डाऊट फुल (कई माह तक किस्त जमा न करने वाले) और लॉस (जिससे रकम की वापसी असंभव), कर्ज लेने वाला अपनी जो संपत्ति दिखाता है, उसके आकलन के आधार पर कर्ज मुहैया कराया जाता है। कई उद्योगों में सरकार की ओर से सबसिडी भी दी जाती है।
 


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