जैविक खेती का रकबा बढ़कर 22.5 लाख हेक्टेयरः राधा मोहन सिंह

punjabkesari.in Thursday, Nov 09, 2017 - 03:34 PM (IST)

नई दिल्लीः कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने आज कहा कि जैविक खेती पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराने के साथ कृषि की स्थिरता को भी सुनिश्चित करती है और इससे मिट्टी उपजाऊ रहती है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठा रही है और अब तक देश में 22.5 लाख हेक्टेयर जमीन को जैविक खेती के दायरे में लाया गया है। उन्होंने कहा कि आज लोगों को पोषणयुक्त आहार की आवश्यकता है जो जैविक खेती के जरिए आसानी से संभव है। इसके अलावा खेती में टिकाऊपन लाने के साथ मिट्टी के स्वास्थ्य को भी जैविक खेती के जरिये दुरुस्त रखा जा सकता है। इसलिए जैविक खेती आज राष्ट्रीय और वैश्विक आवश्यकता बन गई है।

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के पास के ग्रेटर नोएडा में ‘आर्गेनिक वल्र्ड कांग्रेस (जैविक विश्व सम्मेलन) 2017’ को संबोधित करते हुए राध मोहन सिंह ने कहा कि रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण मृदा स्वास्थ्य और पर्यावरण के साथ साथ मानव स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘खाद्य सुरक्षा देश में अब कोई मुद्दा नहीं है लेकिन बढ़ती आबादी को स्वास्थ्यप्रद और पोषक आहार सुलभ कराना अभी भी हमारे लिए एक चुनौती है।’’ उन्होंने कहा कि भारत दुनिया में जैविक खेती करने वाले प्राचीनतम देशों में से है और देश के अधिकांश हिस्सों में अभी भी पारंपरिक जैविक खेती की जाती है। सिंह ने कहा कि मौजूदा समय में जैविक खेती के दायरे में 22.5 लाख हेक्टेयर जमीन को लाया है तथा परंपरागत कृषि विकास योजना से करीब 3,60,400 किसान लाभान्वित हुए हैं। सरकार ने पूर्वोत्तर भारत में जैविक खेती के दायरे में 50,000 हेक्टेयर जमीन को लाने का लक्ष्य तय किया है तथा अभी तक ऐसी खेती के दायरे में 45,863 हेक्टेयर जमीन को लाया जा चुका है।

कृषि मंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश में परंपरागत कृषि विकास योजना को वर्ष 2015-16 में शुरू किया गया था और अभी तक 28,750 किसान इससे लाभान्वित हुए हैं। जैविक कृषि उत्पादों के विपणन के लिए सरकार प्रत्येक जिले में बिक्री केन्द्रों की स्थापना के लिए पांच लाख रुपए आवंटित कर रही है। ‘आर्गेनिक वल्र्ड कांग्रेस’ का आयोजन अंतरराष्ट्रीय जैविक खेती आंदोलन महासंघ (आईएफओएएम) और ओएएफआई के द्वारा किया गया है। इसमें 110 देशों के 1,400 प्रतिनिधियों और 2,000 भारतीय प्रतिनिधियों के भाग लेने की उम्मीद की जा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार इस बात को संज्ञान में रखती है कि पिछले कई दशकों से रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के मनमाने और अत्यधिक इस्तेमाल के कारण यह सवाल सामने आया है, ‘‘हम कब तक इस तरह से खेती कर पायेंगे?’’ उन्होंने कहा कि पर्यावरण के साथ सामाजिक और आर्थिक मुद्दे, रासायनिक उर्वरक आधारित खेती से सम्बद्ध हैं और हमें इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।


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