कैंसर उपचार के लिए ‘वैकल्पिक प्रणाली’ अपनाने की जरूरत

punjabkesari.in Tuesday, Nov 07, 2017 - 01:00 AM (IST)

हर साल 7 नवम्बर को राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को कैंसर के बारे में जानकारी देकर जागरूक करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल 85 लाख व्यक्तियों की मौत कैंसर से हो रही है और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसा माना जा रहा है कि 2020 तक कैंसर के मरीजों की संख्या 1 करोड़ से ऊपर पहुंच जाएगी। 

भारत में भी यह रोग जिस तेजी से लोगों को अपना शिकार बना रहा है उतनी तेजी से हम उसके उपचार की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में 30 लाख कैंसर के मरीज हैं। हर साल कैंसर के लगभग 12 लाख नए मामले सामने आते हैं, जिनमें से 6 लाख लोगों की मौत हो जाती है और यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। जाहिर है कि इलाज की तमाम सुविधाओं के बावजूद इस बीमारी पर हम लगाम नहीं लगा पा रहे हैं। इस बीमारी के इलाज का महंगा होना भी एक बड़ी समस्या है। कीमोथैरेपी, रेडिएशनथैरेपी, बायोलॉजिकल थैरेपी और स्टैम सैल ट्रांसप्लांट से कैंसर का इलाज होता है लेकिन रोगी को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। अपने देश में गरीब मरीज यह कीमत अदा नहीं कर सकते हैं। इसके लिए सरकार रोगियों को कम कीमत पर सुविधाएं मुहैया कराकर उनकी मदद कर सकती है। इसके अलावा वैकल्पिक चिकित्सा की कुछ पद्धतियों को बढ़ावा देकर भी कैंसर रोगियों की जान बचाई जा सकती है। 

करीब 30 साल पहले तक 60 से 70 साल की उम्र में मुंह और गले का कैंसर होता था, लेकिन अब यह उम्र कम होकर 30 से 50 साल तक पहुंच गई है। आजकल 20 से 25 वर्ष की उम्र से भी कम के युवाओं में मुंह व गले का कैंसर देखा जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारी सभ्यता में पश्चिमी सभ्यता का समावेश तथा युवाओं में स्मोकिंग को फैशन व स्टाइल आइकॉन मानना है। मुंह के कैंसर के रोगियों की सर्वाधिक संख्या भारत में है। इंडियन काऊंसिल फार मैडीकल रिसर्च (आई.सी.एम.आर.) द्वारा वर्ष 2008 में प्रकाशित अनुमान के मुताबिक भारत में सिर व गले के कैंसर के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है। इन मामलों में 90 प्रतिशत कैंसर तंबाकू, शराब व सुपारी के सेवन से होता है और इस प्रकार के कैंसर की रोकथाम की जा सकती है। 

देश में वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में कई दशकों से काम करने वाली संस्था डी.एस. रिसर्च सैंटर ने कैंसर की औषधि तैयार की है। इस औषधि का परीक्षण सबसे पहले कैंसर के उन मरणासन्न रोगियों पर किया गया है जो सभी प्रकार के इलाज के बाद देश के प्रतिष्ठित अस्पतालों से यह कहकर मुक्त कर दिए गए थे कि अब वे कुछ हफ्ते या कुछ महीने ही जीवित रह सकेंगे लेकिन इस औषधि ने कैंसर के कई मरणासन्न रोगियों की जान बचाकर नया इतिहास रच दिया है। इस तरह की अद्भुत सफलता की रिपोर्ट हमने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री और डब्ल्यू.एच.ओ. को भेजी है। 926 ऐसे रोगियों की सूची डब्ल्यू.एच.ओ. को भेजी गई है जिन्होंने कैंसर को परास्त किया था।’ 

डब्ल्यू.एच.ओ. को भेजी गई यह सूची रक्त कैंसर से संबंधित कई दस्तावेज प्रस्तुत करती है, जिनमें रोगी करीब 14-15 वर्षों से पूर्णत: स्वस्थ हैं। पैंक्रियाज के करीब 7 रोगियों के विवरण हैं, जिनका मृत्यु से परोक्ष सामना था, वे अब कई वर्षों से उससे दूर हैं।-निरंकार सिंह


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