देश की अर्थव्यवस्था की असली तस्वीर

punjabkesari.in Monday, Oct 09, 2017 - 03:31 AM (IST)

अर्थव्यवस्था की खराब हालत की देश में बड़ी चर्चा हो रही है। विशेषज्ञ कहते हैं कि अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्र इन दिनों मजे में नहीं हैं। एक चर्चित अंग्रेजी दैनिक की रिपोर्ट के मुताबिक निजी निवेश में मंदी की हालत में सुधार के संकेत नहीं दिख रहे। उधर, बैंकिंग क्षेत्र फंसे कर्ज (एन.पी.ए.) की समस्या से बेहाल है तो सीमैंट से लेकर ऊर्जा तक कई क्षेत्रों में विकास की रफ्तार थमी हुई है। 

ख़ुद केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सी.एस.ओ.) ने इसकी पुष्टि की है। जून के मध्य में जी.डी.पी. के आंकड़ों पर बयान जारी करते हुए सी.एस.ओ. ने कहा कि मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में प्राइवेट कार्पोरेट सैक्टर की वृद्धि दर 0.9 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। पिछले वित्तीय वर्ष (2016-17) की पहली तिमाही में यह दर 10.2 प्रतिशत थी। औद्योगिक क्षेत्र को दिए जाने वाले कर्ज में आई गिरावट से भी निजी निवेश में मंदी के संकेत मिलते हैं। आर.बी.आई. के मझोले उद्योगों में यह गिरावट सबसे ज्यादा है। 

रोजगार के मोर्चे पर भी हालात चिंताजनक दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि मार्च 2014 तक 3.26 करोड़ कर्मचारी प्रॉवीडैंट फंड (पी.एफ.) योजना का सक्रिय हिस्सा थे और यह आंकड़ा पिछले 3 सालों में 4.80 करोड़ तक पहुंच गया है। प्रधानमंत्री ने कहा,  ‘‘लोग भूल गए कि नौकरियां बढ़े बिना यह संख्या कभी नहीं बढ़ती। हालांकि, देखा जाए तो इसमें कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ई.पी.एफ.ओ.) की एमनैस्टी स्कीम का बड़ा योगदान है। इसके तहत कम्पनियों को उन कर्मचारियों को ई.पी.एफ.ओ. में रजिस्टर करने के लिए प्रोत्साहित किया गया जिन्हें 1 अप्रैल, 2009 से 31 दिसम्बर, 2016 के बीच नौकरी मिली थी  लेकिन उनका पी.एफ. नहीं काटा जा रहा था। इसके अलावा आई.टी. और वित्तीय सेवा क्षेत्र समेत बी.एस.ई. के तहत आने वाली 121 कंपनियों के नौकरियों के आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2017 तक इन कम्पनियों में करीब साढ़े 11 हजार कम कर्मचारियों की भर्ती हुई। 

जानकारों के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और फंसे हुए कर्ज का भी जिक्र नहीं किया। बैंकों ने मार्च 2017 के अंत तक एन.पी.ए. के रूप में 81,683 करोड़ रुपए बट्टे खाते में डालने की बात मानी है। यह रकम वित्त मंत्रालय के आंकड़ों में बताए गए 57,586 करोड़ रुपए से 41 प्रतिशत ज़्यादा है। विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था में सुस्ती अस्थायी है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) और विश्व बैंक की वार्षिक बैठक से पहले पत्रकारों से बात करने के दौरान उन्होंने कहा, ‘‘पहली तिमाही में गिरावट हुई है लेकिन हमें लगता है कि ऐसा जी.एस.टी. की तैयारियों में कुछ तात्कालिक बाधाओं की वजह से हुआ। आने वाले समय में अर्थव्यवस्था पर जी.एस.टी. का बड़ा ही सकारात्मक प्रभाव पडऩे जा रहा है।’’ 

2 हफ्ते पहले न्यूयार्क में ब्लूमबर्ग ग्लोबल बिजनैस फोरम की बैठक में भी किम ने कहा था कि जापान, यूरोप और अमरीका के साथ भारत तेज वृद्धि दर्ज कर रहा है। जी.एस.टी. को एक संरचनात्मक बदलाव बताते हुए उन्होंने कहा था कि ऐसे टैक्स सुधार के जरिए भारत 8 प्रतिशत की विकास दर हासिल कर सकता है। विश्व बैंक ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग संस्था मूडीज और आई.एम.एफ. ने भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार भरने का भरोसा जता रखा है। उद्योग जगत के चुनिंदा दिग्गजों का आज भी आर्थिकविजन में भरोसा लग रहा है। उनका मानना है कि वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी तिमाही में विकास की रफ्तार तेजी पकडऩे जा रही है। इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था, जो नजर आ रही है, वास्तव में उससे कहीं अधिक अच्छी स्थिति में है। यह जानना होगा कि अप्रैल और मई में विकास दर ‘न्यायसंगत’ थी लेकिन जुलाई में जी.एस.टी. लागू होने से पहले वह थोड़ी फिसल गई। 

जून में ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जी.एस.टी. आने से पहले स्टॉक खत्म करने का दौर चलने लगा था। इस स्थिति के बीच ज्यादातर विनिर्माताओं ने जून में जितना उत्पादन हुआ, उससे कहीं कम दिखाया यानी सामानों का उत्पादन तो जारी रहा  लेकिन 'Input text system' से बचने के लिए उन्हें जुलाई में जाकर clear किया गया। वृद्धि में कमी आने की एक बड़ी वजह यही है कि बड़ी बहस छिड़ी है कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती है  नहीं  पक्ष-विपक्ष के जवाब बिल्कुल अलग-अलग हैं। देश जॉब मार्कीट और एक्सपोर्ट, दोनों ही मोर्चों पर पिछड़ता जा रहा है। खबरों के मुताबिक, 121 लिस्टेड बड़ी कम्पनियों में नई भर्तियां घट रही हैं। ये कंपनियां बी.एस.ई. 500 इंडैक्स का हिस्सा हैं और मैटल, पावर, कैपिटल गुड्स, कंस्ट्रक्शन और एफ.एम.सी.जी. से जुड़ी हैं। 

इनमें आई.टी. और फाइनैंशियल सर्विसिज से जुड़ी कम्पनियां नहीं हैं। इन सभी कम्पनियों ने मार्च 2017 तक 7.30 लाख कर्मचारियों को भर्ती किया, जबकि पिछले साल ये तादाद थी 7.42 लाख। ये आंकड़े संकेत हैं कि देश की बड़ी कंपनियां भी अपनी विस्तार योजनाओं को लेकर उत्साहित नहीं हैं और कर्मचारियों की भर्ती में कटौती कर रही हैं। जे.पी. मॉर्गन रिसर्च के मुताबिक दुनिया भर में बेरोजगारी की दर घटकर 5.5 फीसदी रह गई है, जो स्तर 2008 के आॢथक संकट के पहले देखा गया था। ब्रिटेन और जापान जैसे विकसित देश हों या रूस और ब्राजील जैसे विकासशील देश, हर जगह बेरोजगारी की दर घट रही है। लेकिन भारत में हालात विपरीत हैं । कपड़ा मंत्रालय के आंकड़ों की ही बात करें  तो पिछले 3 कारोबारी सालों में देश भर में 67 यूनिटें बंद हुई हैं जिनमें 17,600 कर्मचारी काम करते थे। इसमें छोटी-मंझोली यूनिट शामिल नहीं हैं क्योंकि इनके बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। 

सितम्बर में देश की सबसे  बड़ी एच.आर. सॢवसिज कम्पनी टीमलीज ने अपनी रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें आशंका जताई गई थी कि 2017 में देश के मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में 40 फीसदी लोगों की छंटनी होगी। 2016 में भी इस सैक्टर ने 30 फीसदी लोगों की छंटनी की थी। साफ है कि मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर की हालत दिनों-दिन बिगड़ती दिख रही है  और यह वही सैक्टर है जो जी.डी.पी. में 18 फीसदी और रोजगार में 12 फीसदी का योगदान देता है। जहां तक एक्सपोर्ट का सवाल है, सकारात्मक पहलू यह  है कि पिछले 12 महीनों से एक्सपोर्ट में लगातार बढ़ौतरी देखी गई है। अगस्त के महीने में एक्सपोर्ट में 10.29 फीसदी का उछाल आया है। इस वित्त वर्ष में अब  तक यानी अप्रैल से अगस्त तक देश का एक्सपोर्ट 8.57 फीसदी बढ़ा है। हालांकि, इसी दौरान इम्पोर्ट में ज्यादा तेज बढ़ौतरी होने से व्यापार घाटे में भी बढ़ौतरी हुई है और यही बात ङ्क्षचता में डालती है। 

इस साल भारत से एक्सपोर्ट बढ़ा तो है लेकिन इसकी ग्रोथ की रफ्तार दूसरे विकासशील देशों से कम है और यह सिर्फ इसलिए नहीं है कि रुपए में डॉलर के मुकाबले मजबूती आई है क्योंकि यह मजबूती तो दूसरे उभरते देशों की मुद्रा में भी आई है। एक्सपोर्ट ग्रोथ के मामले में तो भारत बंगलादेश, वियतनाम और कंबोडिया तक से पिछड़ रहा है और इसकी प्रमुख वजहें मानी जा रही हैं सरकार की 2 प्रयोगवादी नीतियां। पिछले साल नवंबर की नोटबंदी और इस साल जुलाई से लागू हुई  जी.एस.टी. इन दोनों नीतियों के लॉन्ग टर्म फायदे कब होंगे यह तो पता नहीं लेकिन इस समय इन्होंने देश में मैन्युफैक्चरर्स और एक्सपोर्टर्स की कमर जरूर तोड़ दी है। 

यूनाइटेड नेशंस कांफ्रैंस ऑन ट्रेड एंड डिवैल्पमैंट (अंकटाड) की रिपोर्ट में भी देश की कमजोर जी.डी.पी. ग्रोथ का जिम्मेदार नोटबंदी और जी.एस.टी. को ठहराया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की जी.डी.पी. में एक-तिहाई और रोजगार में करीब 80 फीसदी योगदान करने वाला असंगठित क्षेत्र सरकार के इन दोनों कदमों से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। अब सरकार ने अर्थव्यवस्था की रफ्तार को तेजी देने के लिए जी.एस.टी. में कुछ बदलाव किए हैं। उम्मीद करें कि इससे देश में सकारात्मक व्यापारिक रुझान पैदा हो सकेगा। कुछ भी हो अर्थशास्त्र की सच्चाई पर राजनीति का झूठ हमेशा ही भारी पड़ता है, यूं भी इस देश के अर्थशास्त्र को समझना आसान नहीं है। वास्तविकता में कुछ ङ्क्षचताओं के अलावा देश के आॢथक हालात इतने बुरे भी नहीं हैं जितना हो-हल्ला मच रहा है।


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