कांग्रेस की मजबूती के लिए राहुल को अभी बहुत कुछ करना पड़ेगा

punjabkesari.in Wednesday, Mar 07, 2018 - 02:13 AM (IST)

क्या कांग्रेस पूर्वोत्तर में खराब प्रदर्शन के बाद और आगे बढ़ रही है? हालांकि अस्तित्व बचाने के तौर पर यह मेघालय में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। भाजपा एवं इसके सहयोगी कांग्रेस पार्टी की भावनाओं का उपहास बनाते हुए तीनों राज्यों नागालैंड, मेघालय व त्रिपुरा में सरकार बनाने की प्रक्रिया में हैं। एक समय था जब पूर्वोत्तर के लोग विशेषकर कबीलाई कांग्रेसी नेताओं से जुड़े होते थे परन्तु पिछले कुछ वर्षों से उनका झुकाव क्षेत्रीय पाॢटयों एवं अब भाजपा की ओर हो गया है। 

अभी एक वर्ष पूर्व कांग्रेस 5 पूर्वोत्तर राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय एवं मिजोरम में सत्तासीन थी। शनिवार की जीत के बाद भाजपा नेतृत्व वाला राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) म्यांमार, भूटान, नेपाल एवं बंगलादेश सीमांत क्षेत्रों के राजनीतिक भू-क्षेत्र को विस्तार देते हुए 7 पूर्वोत्तर राज्यों में से 6 पर अपना नियंत्रण कर लेगा। मिजोरम ही केवल एक ऐसा पूर्वोत्तर राज्य है जहां कांग्रेस राज कर रही है एवं इस वर्ष की समाप्ति पर चुनावों के पश्चात यह भी बदल सकता है। भाजपा का उदय 2016 में असम में जीतने वाली पार्टी के साथ हुआ। अरुणाचल प्रदेश में पार्टी ने मुख्यमंत्री पेमा खांडू समेत कांग्रेसी विधायकों को अपने में मिला लिया। इसके पश्चात भाजपा ने राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी कांग्रेस के बावजूद बतौर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह सहित गत वर्ष मणिपुर में गठबंधन सरकार का गठन किया। 

इसका मतलब है कि क्या कांग्रेस क्षेत्र में हार रही है? पार्टी को पूर्वोत्तरी 25 लोकसभा एवं 498 विधानसभा सीटों सहित 45.58 मिलियन की आबादी क्यों नहीं दिख रही है? यह गुत्थी सुलझाने की आवश्यकता है जो केवल कांग्रेस के रणनीतिकार ही विस्तार से सुलझा सकते हैं। कांग्रेस के रणनीतिकार आश्वस्त हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों में हार का मतलब यह नहीं है कि 132 वर्षीय पुरानी पार्टी समाप्त हो रही है। पार्टी ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। यह अब केवल पंजाब, मिजोरम, कर्नाटक एवं पुड्डुचेरी में सत्तासीन है परन्तु देश में अभी इसका जनाधार है और इसका अपना वोट बैंक भी है। 

गुजरात में प्रदर्शन में सुधार के पश्चात एवं राजस्थान व मध्य प्रदेश में उपचुनाव जीतने पर कांग्रेसी कार्यकत्र्ता उत्साहित एवं आश्वस्त थे कि पार्टी सांप-सीढ़ी के खेल में सीढ़ी पर चढ़ जाएगी। दुर्भाग्यवश अज्ञात कारणों से कांग्रेस ने पूर्वोत्तर चुनावों में गंभीरता से प्रयास नहीं किया। मेघालय में भी इसने सारा भार मुख्यमंत्री मुकुल संगमा पर छोड़ दिया। नागालैंड व त्रिपुरा में तो इसने किसी को भी टक्कर नहीं दी। परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी ने दोनों राज्यों में एक सीट भी नहीं जीती है। इसी कारण पार्टी के वोट भाजपा को चले गए एवं इसका अपना वोट शेयर भी नीचे आ गया है। त्रिपुरा के लोगों ने संभवत: सोचा होगा कि कांग्रेस ही केवल एक विकल्प नहीं है और उन्होंने भाजपा को एक मौका देने का निर्णय लिया। 

तथ्य यह भी है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का परिणामों का इंतजार किए बिना इटली में अपने ननिहाल चले जाना भी यह दर्शा गया कि वह क्षेत्र में जीत के प्रति गंभीर नहीं थे इसलिए पार्टी पूर्वोत्तर में परिणामों से निराश हो गई है। कर्नाटक, जहां चुनाव मई में होने हैं, को हाथ में रखने के लिए कांग्रेस अपनी रणनीति के साथ आगे जा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कुछेक बार राज्य में गए हैं। हालांकि सॉफ्ट ङ्क्षहदुत्व कार्ड अपनाते हुए उन्होंने कई मंदिरों में प्रार्थनाएं भी कीं। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को अभी तक स्वतंत्र रखा गया है। कर्नाटक को हाथ में रखने से पार्टी का मनोबल ऊंचा होगा जिसे 3 अन्य बड़े राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के चुनावों तथा मिजोरम चुनावों के लिए भी जहां चुनाव वर्ष के अंत में होने नियत हैं, का सामना करना है। इन सभी राज्यों में सीधी टक्कर दोनों राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस एवं भाजपा के बीच है। 

छत्तीसगढ़ में दोनों के बीच वोट शेयर में मात्र 1.5 प्रतिशत का अंतर है। इस राज्य में कांग्रेस के लिए जीतने का एक बड़ा मौका है क्योंकि भाजपा यहां सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। यह केवल तभी संभव हो सकता है यदि कांग्रेस अपने झटकों से उभरे तथा आकर्षक चुनावी मुद्दों के साथ सामूहिक एवं निजी हितों को छोड़कर स्वयं को सत्तासीन भाजपा के सामने विकल्प के तौर पर पेश करे। राजस्थान व मध्य प्रदेश में हाल ही में हुए उपचुनावों की जीत से कांग्रेस रणनीतिकार अपनी योजनाओं को और प्रबल बना रहे हैं। शीर्ष नेतृत्व को भी निर्णय लेना है कि इन राज्यों में पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा। 

कांग्रेस का 16 से 18 मार्च तक अपना कार्यकारी अधिवेशन है जिसमें वह भविष्य की अपनी कार्रवाई एवं विपक्ष को संगठित करके भाजपा से कैसे लडऩा है, का निर्णय कर सकती है। पार्टी मामलों में भागीदारी के उद्देश्य से 10 हजार से अधिक प्रतिनिधि देश भर से इसमें एकत्रित होंगे। इसमें कोई आशंका नहीं है कि नए कांग्रेस अध्यक्ष को बहुत कुछ करना है एवं उन्हें आगे बढऩे के लिए बहुत ही संभलकर भविष्य की तैयारी भी करनी है यदि वह कांग्रेस को अस्तित्व में बनाए रखना चाहते हैं। तत्काल चुनौती कर्नाटक है और 2019 लोकसभा चुनावों की समाप्ति तक अन्य राज्यों के लिए चुनाव आने वाले हैं। बहुत देर से उन्होंने यह नहीं जाना है कि अपनी पार्टी में जान डालने के लिए उन्हें क्या योजना बनानी है। अभी तक उन्होंने नई टीम की घोषणा भी नहीं की है। इस सभी के लिए उनके पास ज्यादा समय नहीं है।-कल्याणी शंकर


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News