संवैधानिक गलती से ‘आप’ ने खुद संकट मोल लिया

punjabkesari.in Saturday, Jan 20, 2018 - 04:03 AM (IST)

आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता जाना तय है। चुनाव आयोग ने इन सभी को लाभ के पद का दोषी माना है। इन 20 विधायकों में कैलाश गहलोत भी हैं जो केजरीवाल सरकार में मंत्री हैं। जाहिर है कि केजरीवाल सरकार और खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जबरदस्त किरकिरी हो रही है। 

भाजपा और कांग्रेस को केजरीवाल पर हमले करने का नया मौका मिल गया है। यूं तो अब भी ‘आप’ के पास चुनाव आयोग की सिफारिश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने का अधिकार बचा है लेकिन देखा गया है कि आमतौर पर अदालतें चुनाव आयोग के फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करती हैं। यानी कुल मिलाकर तय है कि दिल्ली में अगले 6 महीनों में मिनी विधानसभा चुनाव होने वाला है। इस बात की संभावना बेहद कम है कि केजरीवाल विधानसभा भंग कर फिर से चुनाव लडऩे के इच्छुक होंगे। हालांकि भाजपा और कांग्रेस ने केजरीवाल से इस्तीफा मांगना शुरू कर दिया है। 

आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग पर विधायकों की नहीं सुनने का आरोप लगाना शुरू कर दिया है और साथ ही उसका कहना है कि फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा। हो सकता है कि आने वाले दिनों में चुनाव आयोग पर भाजपा की मोदी सरकार के इशारे पर काम करने के भी आरोप ‘आप’ के नेता लगाने लगें। लेकिन यहां ‘आप’ को देखना होगा कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति की संवैधानिक गलती करके उसने खुद संकट मोल क्यों लिया? यह सही है कि अकेला दिल्ली राज्य ऐसा नहीं है जहां संसदीय सचिव रखे गए हों। बहुत से राज्यों में ऐसी परम्परा रही है। सवाल उठता है कि आखिर संसदीय सचिव रखे ही क्यों जाते हैं? इन सभी को राज्य मंत्री का दर्जा मिल जाता था और लाल बत्ती की गाड़ी भी लेकिन बाद में नियम सख्त होते चले गए। हालांकि इसका तोड़ भी कुछ राज्य सरकारों ने ऐसा कानून बनाकर निकाला जिसके तहत ऐसे सभी पद लाभ के पद के दायरे से बाहर कर दिए गए। 

होना तो यह चाहिए था कि दिल्ली में भी केजरीवाल सरकार पहले वह कानून लेकर आती लेकिन 13  मार्च 2015 को 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया गया और हल्ला मचने पर जून में केजरीवाल सरकार ने विधानसभा में बिल पास करवाया जिसे राष्ट्रपति ने नामंजूर कर दिया। यह बिल भी हड़बड़ी में तब लाया गया जब प्रशांत पटेल नाम  के एक सज्जन ने 19 जून 2015 को राष्ट्रपति के पास शिकायत भेजी। उधर राष्ट्रपति ने पटेल की अर्जी को चुनाव आयोग के पास भेजा तो इधर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा से लाभ के पद के कारण अयोग्य ठहराने के प्रावधान को खत्म करने का बिल पास करवाया। यह चाल काम नहीं आई, उलटे केजरीवाल के खिलाफ ही गई। एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में लगाई गई जिसने 8 सितम्बर 2016 को इन संसदीय सचिवों की पद पर नियुक्ति को रद्द कर दिया। 

अब चुनाव आयोग की सिफारिश के बाद आम आदमी पार्टी आरोप लगा रही है कि विधायकों को अपनी बात रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया। लाभ के पद की व्याख्या संविधान में की गई है और उसका किसी भी कीमत पर उल्लंघन नहीं होना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (ए) और आर्टीकल 19 (1) (ए) में इसका उल्लेख किया गया है। हालांकि आम आदमी पार्टी इन तर्कों को सुनने को तैयार नहीं है। वैसे ऐसा भी नहीं है कि इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्रियों ने संसदीय सचिव नहीं बनाए हों। सवाल उठता है कि तब संसदीय सचिव वैध था और अब अवैध है...ऐसा कैसे हो सकता है। 

आम आदमी पार्टी पर 20 विधायकों को खो देना (फिलहाल के लिए) एक झटका है लेकिन इसके साथ ही एक अन्य खतरा भी मंडरा रहा है। 27 विधायकों को मोहल्ला क्लीनिक की रोगी कल्याण समिति का अध्यक्ष बनाया हुआ है। विभोर आनंद नाम के एक शख्स ने इसे भी लाभ का पद मानते हुए चुनौती दी है। इन 27 विधायकों में से 7 ऐसे भी हैं जिन पर संसदीय सचिव के पद पर रहने का आरोप भी था। यानी कुल मिलाकर 40 विधायकों पर सदस्यता जाने की तलवार लटक रही है। इसमें से 20 निपट गए हैं। हालांकि 20 के निपटने के बाद भी केजरीवाल सरकार के पास 46 विधायक बचते हैं जो बहुमत के लिए जरूरी 36 से ज्यादा हैं। यानी सरकार सुरक्षित है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन 46 में से कपिल मिश्रा जैसे बगावती तेवर वाले 5 विधायक भी शामिल हैं। इन्हें हटा दिया जाए तो संख्या 41 की बैठती है जो बहुमत से सिर्फ 5 ही ज्यादा है। यहां सवाल उठता है कि क्या भाजपा कोई खेल कर सकती है जो दिल्ली में नए विधानसभा चुनावों  का रास्ता खोल सके। 

सवाल उठता है कि अब केजरीवाल के पास आगे क्या रास्ता बचता है? एक ही रास्ता है कि 20 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों में डटकर लड़ें, सभी सीटों पर उन्हीं विधायकों को फिर से टिकट दें जिनकी सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की गई है। केजरीवाल को इन 20 में से कम से कम 15 विधायकों को फिर से जितवा कर विधानसभा में लाना होगा। वैसे इन विधायकों में से एक कैलाश गहलोत मंत्री भी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि नैतिकता को देखते हुए क्या केजरीवाल कैलाश गहलोत को मंत्री पद से त्यागपत्र देने को कहते हैं या अगले 6 महीनों तक मंत्री बनाए रखते हैं। 

भाजपा के पास अपना दमखम दिखाने का पूरा मौका है। उसकी कोशिश 20 में से आधी से ज्यादा सीटें जीतने की होनी चाहिए तभी वह कह सकेगी कि दिल्ली में केजरीवाल का जादू टूट रहा है। उधर कांग्रेस को वापसी का मौका मिला है। वह कम से कम विधानसभा में अपना खाता खोल सकती है और अगर 5-6 सीटें भी निकाल पाती है तो उसके लिए राहत की खबर होगी। लेकिन फिर कहना चाहेंगे कि अगर केजरीवाल 20 में से 15 सीटें निकाल लेते हैं तो उनका कद बढ़ जाएगा।-विजय विद्रोही


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