उप चुनावों में हार के बाद भाजपा व इसके सहयोगी दलों के नेताओं के चेतावनीपूर्ण बयान

punjabkesari.in Friday, Mar 16, 2018 - 03:27 AM (IST)

उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर की हाई प्रोफाइल सीटों पर हुए उपचुनावों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भारी झटका लगा तथा भाजपा की अप्रत्याशित पराजय से पार्टी में कोहराम मच गया है। जहां भाजपा नेतृत्व इस पराजय के कारण तलाशने में जुट गया है वहीं भाजपा के सहयोगी दलों और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा इस सम्बन्ध में दिए गए बयानों से स्पष्ट है कि स्थिति कितनी गंभीर हो गई है। 

शिव सेना ने कहा है कि ‘‘लोगों को अब एहसास हो गया है कि उनके साथ धोखा हुआ है तथा 2019 के चुनाव में भाजपा व कांग्रेस के संख्या बल में पक्का बदलाव होगा।’’ लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के प्रमुख राम विलास पासवान के अनुसार, ‘‘भाजपा ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया था जिस पर उसे कायम रहना होगा। समाज के हर वर्ग में विश्वास पैदा करना होगा। राजग के लिए यह नई रणनीति तय करने का अवसर है।’’ 

पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रह्मïण्यम स्वामी ने योगी आदित्यनाथ को निशाना बनाते हुए कहा कि ‘‘जो नेता अपनी सीट पर चुनाव नहीं जिता सके, उन्हें बड़ा पद देना लोकतंत्र में आत्महत्या करने जैसा है। जनता में जो लोकप्रिय हैं वे किसी पद पर नहीं हैं और ये सब बातें ठीक करने के लिए अभी भी समय है।’’ पूर्वांचल के कद्दावर भाजपा नेता और आजमगढ़ से पूर्व सांसद रमाकांत यादव के अनुसार, ‘‘पिछड़े दलितों को उनका अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए जो योगी नहीं दे रहे। वह केवल एक जाति तक ही सीमित हैं।’’ 

‘‘प्रदेश में सी.एम. बना तो लगा कि अब सबकी चिंता की जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जिस प्रकार पूजा-पाठ करने वाले को मुख्यमंत्री बना दिया गया, सरकार चलाना उनके वश का काम नहीं। जब सरकार बनी थी तब सोचा गया था कि सभी को मिलाकर चलेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।’’ ‘‘पिछड़ों और दलितों के आरक्षण से छेड़छाड़ और उनकी उपेक्षा के कारण भाजपा हारी। यदि पार्टी समय रहते नहीं संभली तो 2019 में भी बुरी तरह हारेगी। सबको साथ लेकर चलने से ही इसकी भरपाई की जा सकेगी।’’ पटना के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने भी कहा कि ‘‘घमंड, गुस्सा और अति आत्मविश्वास लोकतांत्रिक राजनीति के सबसे बड़े दुश्मन हैं। चाहे यह ‘मित्रों’ की तरफ से आएं या विपक्ष की तरफ से या ट्रम्प की तरफ से।’’ 

शत्रुघ्न सिन्हा ने अपने ट्वीट में ‘मित्रों’ का उल्लेख करते हुए स्पष्टï रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष किया कि ‘‘सर, ये नतीजे भविष्य के बारे में भी बताते हैं जिन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता।’’ ‘‘ये इस बात का संकेत हैं कि आगे कठिन समय है इसलिए सीट बैल्ट बांधनी होगी। आशा है कि भविष्य में हम इस संकट से निपट सकेंगे।’’ हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से सांसद शांता कुमार के अनुसार, ‘‘यह भारतीय जनता पार्टी के लिए एक चेतावनी है तथा पार्टी को इस पराजय के संबंध में आत्म निरीक्षण करना चाहिए।’’ उक्त आलोचनात्मक टिप्पणियों का संज्ञान लेकर इस पर भाजपा नेतृत्व को आत्ममंथन करने और इसके साथ ही अपने से दूर जा रहे सहयोगी दलों की नाराजगी पर भी गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। 

संभवत: इसी का आभास करके वित्त मंत्री अरुण जेतली ने कुछ समय पूर्व यह कह दिया था कि चुनाव 2018 में नहीं बल्कि पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 2019 में ही करवाए जाएंगे। यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा के आधा दर्जन से अधिक सहयोगी दल किसी न किसी बात को लेकर इसके नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं जिनमें तेलगू देशम पार्टी, शिव सेना, पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी तथा जद (यू) शामिल हैं। अत: इससे पहले कि पार्टी को और नुक्सान पहुंचे, भाजपा नेतृत्व के लिए पार्टी और संगठन में उठ रहे विरोधी स्वरों को सुनना और अपने भीतर घर कर गई कमजोरियों को दूर करना ही समय की मांग है।—विजय कुमार


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