‘स्वच्छ भारत अभियान’ का दूसरा चरण ‘कूड़ा प्रबंधन’

punjabkesari.in Monday, Aug 21, 2017 - 12:05 AM (IST)

स्वच्छ भारत अभियान केंद्र सरकार  का एक महत्वपूर्ण एजैंडा है परंतु अब इस अभियान के दूसरे चरण यानी वेस्ट मैनेजमैंट अथवा कूड़ा प्रबंधन की ओर कदम बढ़ाने का समय आ चुका है। कूड़ा प्रबंधन में मुम्बई नगर पालिका की नाकामी के बारे में बहुत कहा जाता रहा है, मगर यह समस्या केवल मुम्बई तक सीमित नहीं है बल्कि देश के अधिकतर महानगर तथा नगर इस समस्या का सामना कर रहे हैं।

हाल ही में महज 15 मिनट की बारिश के बाद दिल्ली के प्रतिष्ठित अस्पताल जलमग्न हो गए थे। यह इसलिए और भी खतरनाक है क्योंकि अस्पतालों में कूड़ा अक्सर विषैला तथा संक्रमित होता है। कूड़ा पैदा करने वाले अन्य प्रमुख स्रोत उद्योग तथा होटल हैं।

ठोस कूड़ा प्रबंधन नियमों में लापरवाही को लेकर राजधानी के 17 होटलों पर जुर्माना लगाने के बाद नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने शुक्रवार को दिल्ली के अस्पतालों की भी सख्ती से जांच की और उनमें से 9 पर जुर्माना लगाया है। जिन अस्पतालों पर जुर्माना लगाया गया है उनमें से सरकारी अस्पतालों को जुर्माने के रूप में 75 हजार रुपए, जबकि निजी अस्पतालों को 50 हजार रुपए से 2 लाख रुपए तक अदा करने को कहा गया है।

जुर्मानों का यह आदेश अलमित्रा एच. पटेल की एक याचिका की सुनवाई के बाद जारी किया गया है। अलमित्रा ने अपनी याचिका में अस्पतालों, होटलों, कालेजों, मॉल्स, रेलवे स्टेशनों तथा बस स्टैंडों पर कूड़ा प्रबंधन के लिए नियम तय करने की मांग की है क्योंकि अभी तक इस संबंध में कोई सख्त नियम मौजूद नहीं हैं

कूड़ा प्रबंधन का एक अन्य पहलू तब उजागर हुआ जब शनिवार दोपहर को पूर्वी दिल्ली के एक मॉल में सुरक्षा सामान के बिना गटर साफ कर रहे 2 भाइयों की मौत जहरीली गैस से हो गई। यह त्रासदी लाजपत नगर में दिल्ली जल बोर्ड के सीवर में & सफाई कर्मियों की मौत के महज 6 दिन बाद घटी है। इससे पहले जुलाई में ही दक्षिण दिल्ली के घितोरनी के गटर में 4 मजदूरों की मौत हुई थी।

हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की मौतों का कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं है, अनुमान है कि देश भर में 100 सफाई कर्मी गटर साफ करते हुए अपनी जान गंवा देते हैं। कारण है कि उनके सरकारी अथवा निजी नियोक्ता उन्हें जाम गटर खोलने का काम करते हुए सुरक्षा के लिए जरूरी गैस मास्क, सेफ्टी बैल्ट, हैल्मेट जैसा कोई सामान उपलब्ध नहीं करवाते हैं, बॉडी सूट अथवा ऑक्सीजन सिलैंडर उपलब्ध करवाना तो दूर की बात है।

किसी भी व्यक्ति से अस्व‘छ तथा असुरक्षित हालात में काम करवाना कानूनन अपराध है। ऐसा करने वाले नियोक्ताओं को जेल तथा जुर्माना हो सकता है परंतु नियमों का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध आपराधिक केस दायर करने की खबर सुनने को नहीं मिलती है। सफाई कर्मियों की हालिया मौत की घटनाओं में भी किसी के खिलाफ केस दर्ज नहीं हुआ है। स्पष्ट है कि पुराने सिस्टम से ही आज भी काम जारी है।

खतरनाक होने के बावजूद कूड़ा प्रबंधन के दोनों पहलुओं को सम्भाला जा सकता है। कर्मचारियों को कुछ सुविधाएं उपलब्ध करवानी होंगी तथा कूड़ा पैदा करने वालों के लिए भी पुख्ता सिस्टम तय करना होगा। दोनों पहलुओं की ही नियमित निगरानी भी करनी होगी।

यदि होटल इंडस्ट्री कुल कूड़े का 25 से 30 प्रतिशत पैदा करती है तो वहां ’यादातर कूड़ा रसोई (खाने-पीने की चीजें जैसे छिलके, एल्युमिनियम कैन्स, कांच की बोतलें, तेल आदि) अथवा हाऊस कीपिंग विभाग (सफाई के काम आने वाली चीजें तथा प्लास्टिक पैकेजिंग आदि) से पैदा होता है। होटल प्रबंधन को अपने यहां कूड़े को ठिकाने लगाने के विकल्पों पर गौर करना चाहिए।

बायो सैनिटाइजर में मशीनें प्रतिदिन 500 किलो कूड़ा सम्भाल सकती हैं। भोज्य पदार्थों को वे उनकी मूल मात्रा के एक-तिहाई तक कुचल कर गंध रहित कम्पोस्ट में बदल देती हैं। इसका इस्तेमाल खाद के रूप में किया जा सकता है। 
अगर सूखा तथा गीला कूड़ा घरों, होटलों, अस्पतालों से अलग-अलग इकठ्ठा  कर भी ले तो सरकार के पास इन्हें अलग-अलग रखने और रीसाइकिल करने का इंतजाम नहीं है। 


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