‘पद्मावत’ प्रतिबंध: बिन बात बवाल

punjabkesari.in Monday, Feb 05, 2018 - 04:11 AM (IST)

1598 में शेक्सपियर ने ‘मच अडो अबाऊट नथिंग’ नामक एक नाटक लिखा था। उन दिनों ‘नोटिंग’ शब्द को भी ‘नथिंग’ शब्द की तरह ही उच्चारित किया जाता था। ‘नोटिंग’ का अर्थ ‘गप या अफवाह’ होता था यानी आज इसका अनुवाद करना हो तो इसका अर्थ होगा ‘बिन बात के बवाल’ अथवा अफवाह को लेकर छिड़ा बेमतलब का मुद्दा। वैसे आज हम इसे समझाने के लिए सिर्फ ‘पद्मावत प्रतिबंध’ कहें तो भी हर कोई समझ जाएगा। 

विशेषकर 3 फरवरी को श्री राजपूत करणी सेना की ताजा घोषणा के बाद तो यह सारा मुद्दा कुछ ऐसा ही लग रहा है, जिन्होंने संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ की रिलीज को लेकर इतने दिनों से विरोध स्वरूप किए जा रहे अपने बवाल को वापस लेने का फैसला किया है क्योंकि फिल्म राजपूतों की वीरता का गुणगान करती है। इसकी रिलीज के सप्ताह भर बाद शुक्रवार को मुम्बई में इसके कुछ सदस्यों ने फिल्म देखी तो पाया कि फिल्म राजपूतों की वीरता तथा बलिदान को गौरवान्वित करती है और इसे देख कर प्रत्येक राजपूत गर्व महसूस करेगा। यह बयान करणी सेना के मुम्बई नेता योगेंद्र सिंह कटार ने दिया है।

इतना ही नहीं, करणी सेना ने एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने सदस्यों से विरोध वापस लेने और राजस्थान में इसे रिलीज करवाने में मदद करने को कहा है। पूरा साल लोग करणी सेना के विरोध प्रदर्शनों से लेकर आयोजित बंद आदि को देखते-सुनते व झेलते रहे थे। ऑनर किलिंग, बलात्कार तथा अपहरण जैसे अन्य सामाजिक मुद्दों  के बजाय लोग, टी.वी. पर चर्चाओं से लेकर पत्र-पत्रिकाओं में 13वीं सदी की रानी की ही बातें हो रही थीं। यदि वाणी से प्रकट की गई आक्रामकता को नजरअंदाज कर भी दिया जाए, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद वाहनों को आग के हवाले करने, ट्रक ड्राइवरों के साथ मारपीट से लेकर स्कूल बसों पर पथराव तथा जलाने के प्रयास जैसी हिंसा को कैसे भुलाया या माफ किया जा सकता है। 

देश में राजनीतिज्ञों को नेताओं का स्तर दिया जाना कब का बंद हो चुका है परंतु चाहे भाजपा हो या कांग्रेस राजनीतिक जगत में इस ङ्क्षहसा को लेकर पूर्ण चुप्पी इनके गिरते स्तर और वोट राजनीति का प्रमाण है। राजस्थान, हरियाणा की चुनी हुई सरकारों ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को लागू करवाने के बजाय खुलेआम इसे चुनौती ही नहीं दी, मनमानी करने वाले तत्वों का काफी हद तक साथ भी दिया। न केवल सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की गरिमा को धराशायी किया गया, बल्कि भविष्य में उद्दंड समूहों द्वारा समाज पर अपने मुद्दों को थोपने का मार्ग प्रशस्त किया और ऐसा उस बात के लिए हुआ जिसे किसी ने न देखा था और न ही उसका कोई प्रमाण उनके पास था। 

चित्रकला, नृत्य, नाटक, कहानी लेखन आदि किसी भी तरह की कला में एक नकारात्मक किरदार अथवा खलनायक तो होता ही है ताकि अच्छा पक्ष उजागर हो सके। यदि हर वर्ग इस तरह से विरोध करने लगेगा तो समाज भला किस तरह से सीख लेने की बात सोच सकेगा। इस सारे हिंसक विरोध का शायद एक ही सकारात्मक पक्ष रहा कि 700 वर्ष पहले की एक रानी के बारे में बातें करते हुए देश ने अपने इतिहास पर एक नजर डाली। हमने यह भी सीखा कि जब देश में एकता न हो तो आक्रमणकारी तथा घुसपैठिए जीत जाते हैं। अलाऊद्दीन खिलजी ने 1301 में रणथम्भौर को जीता, 1303 में चित्तौड़ और 1307 तक पूरे राजपूताना पर उसका कब्जा था। दक्षिण में भी अधिकतर राज्यों को उसने जीता और पहली बार वारंगल से कोहिनूर को किसी आक्रमणकारी को दिया गया जब खिलजी ने वारंगल की राजकुमारी से विवाह किया। शायद इस घटनाक्रम को शायर अहमद फराज की निम्र पंक्तियां बेहतर व्यक्त करती हैं : 

फिर वही आग दर आई है मेरी गलियों में,
फिर मेरे शहर में बारूद की बू फैली है,
फिर से ‘तू कौन है मैं कौन हूं’ आपस में सवाल, 
फिर वही सोच मियान-ए-मन-ओ-तू फैली है।
आज ऐसा नहीं, ऐसा नहीं होने देना
ऐ मिरे सोख्ता जानो, मिरे प्यारे लोगो
अब के गर जलजले आए तो कयामत होगी
मेरे दिलगीर, मिरे दर्द के मारे लोगो
किसी गासिब, किसी जालिम, किसी कातिल के लिए
खुद को तक्सीम न करना मिरे सारे लोगो।


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